इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह पंचायत चुनावों में अनुसूचित जनजाति को आनुपातिक प्रतिनिधित्व दें। इसके साथ कहा गया है कि ग्राम पंचायत की अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित प्रधानों की सीटों में से जनजाति के लिए सीटों का निर्धारण किया जाए अनुसूचित जाति से 10 जातियों व सात उपजातियों को जनजाति घोषित करने के बाद उनके लिए पंचायत चुनावों में आरक्षण न देने को अदालत में चुनौती दी गई थी जिस पर हाईकोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुनाया। हाईकोर्ट के नए आदेश का प्रदेश में होने वाले पंचायत चुनावों पर गहरा असर पड़ सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनील अम्बवानी तथा न्यायमूर्ति केएन पांडेय की खण्डपीठ ने प्रदेशीय जनजाति विकास मंच व आदिवासी विकास समिति व अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। न्यायालय ने कहा है कि अनुपातिक प्रतिनिधित्व संवैधानिक अधिकार है, जबकि चुनाव लड़ना वैधानिक अधिकार है। याचीगण अपने अनुपातिक प्रतिनिधित्व के संवैधानिक अधिकारों की मांग कर रहे हैं। डाटा उपलब्ध न होने के आधार पर इनकी इस मांग को अस्वीकार करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। ज्ञातव्य हो कि संसद में एससी, एसटी संशोधन एक्ट 2002 में पारित किया गया। इसके तहत अनुसूचित जाति की 66 जातियों में से 10 जातियों व सात उप जातियों को जनजाति घोषित किया गया। इसी अनुक्रम में तीन जुलाई 03 को राज्य सरकार ने शासनादेश जारी कर कानून संशोधित कर लिया। जनजातियों में गोंड, खरवार, सहरिया, परहिया, वैणा, पंरवा, अमरिया, पटारी, चेरी व भुइया शामिल हैं। धूरिया, नायक, ओझा, पठारी, राज मोड, खैरवार, पनिका उप जाति हंै। ये जातियां प्रदेश के 13 जिलों महाराजगंज, सिद्धार्थ नगर, बस्ती, गोरखपुर देवरिया, मऊ, आजमगढ़, जौनपुर, बलिया, गाजीपुर, वाराणसी, मिर्जापुर, सोनभद्र व ललितपुर में पाई जाती हैं। न्यायालय ने कहा है कि जनजाति की 107963 की जनसंख्या में 537623 की जनसंख्या को शामिल कर लिया गया है। 2001 की जनगणना में 5 जातियां जनजाति थीं। अब 10 अन्य जातियों को शामिल किया गया है। न्यायालय ने कहा है कि संशोधन अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 243 (डी) के अंतर्गत किया गया है, जिन जिलों में जनजातियां है, उन जिलों की आरक्षण सूची को पुनरीक्षित करने का न्यायालय ने निर्देश दिया है(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,17.9.2010)।
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