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09 सितंबर 2010

बिहारःपुलिस मैनुअल बेमानी है मैडमों के आगे

पुलिस विभाग में जवानों व कनीय अधिकारियों के कामकाज के लिये मैनुअल बनाया गया है। जिसमें कर्तव्य निर्वहन से लेकर अधिकार तक की चर्चा की गई है। इसी मैनुअल के आधार पर रेल पुलिस ही नहीं सिपाही से लेकर इंस्पेक्टर तक का स्थानांतरण और नियुक्ति होती है। इसकी देखरेख की जिम्मेदारी पुलिस के आला अधिकारियों पर होती है। लेकिन अगर बड़े साहब की मैडम मेहरबान हैं तो पुलिस मैनुअल एक किताब से ज्यादा कुछ भी नहीं। छह साल क्या बीस साल में भी कोई मैडम के कृपापात्र जवान या अधिकारी का स्थानांतरण नहीं कर सकता। भले ही तीन वर्ष या उससे कुछ अधिक समय से तैनात सिपाही से अधिकारी तक बदल दिये गये हों। अब रेल पुलिस को ही ले लीजिए। इस विभाग में ऐसे कई जवान व अधिकारी हैं जो एक ही स्थान पर दस साल से जमे हुए हैं। परंतु उनका स्थानांतरण नहीं किया गया, ऊपर से उनका प्रमोशन भी हो गया। बीस वर्ष पूर्व जीआरपी के एक सिपाही की बहाली हुई थी। उसकी पोस्टिंग पटना जंक्शन पर की गई। तब से लेकर वह जंक्शन पर ही तैनात है। यहां तक कि उसे सिपाही से जमादार बना दिया गया फिर भी उसका स्थानांतरण नहीं हुआ। पिछले दो दशक से वह मुख्यालय में तैनात अधिकारियों व उनके परिजनों की सेवा में लगा है। किस अधिकारी को कहां जाना है इसकी जानकारी उसे होती है। उसकी तैनाती भले ही कहीं और की गयी हो लेकिन वह सुबह आठ बजे से आरक्षण काउंटर पर ही जमा मिल जायेगा। टिकट चाहे पुलिस अधिकारियों का हो या ट्रेवेल एजेंट का, तत्काल बुकिंग का बयाना उसे पहले ही मिल जाता है। पिछले तीन वर्षो के दौरान टिकट दलालों व उसके बीच कई बार मारपीट हुई। मामला जीआरपी थाने तक पहुंचा परंतु मैडम की मेहरबानी से उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। बल्कि जीआरपी के सारे पुलिसकर्मियों (कुछ को छोड़कर) का तबादला कर दिया गया। गौरतलब है कि पुलिस मैनुअल के नियम 778 के मुताबिक किसी भी स्थिति में किसी भी अधिकारी या कांस्टेबल को एक स्थान पर 12 वर्षो से अधिक नहीं रहना है। वहीं जीआरपी में तो छह वर्ष से अधिक रहने का प्रावधान ही नहीं है(दैनिक जागरण,पटना,9.9.2010)।

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