कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) पर ब्याज दर को साढ़े आठ से बढ़ाकर साढ़े नौ फीसदी करने के ट्रस्टी बोर्ड के फैसले के पीछे राजनीतिक वजहों के अलावा अन्य कारण भी थे। यह निर्णय इसलिए भी लिया गया है क्योंकि बाजार के मुकाबले ईपीएफ पर ब्याज की दर कम आकर्षक हो गई थी। इसके चलते ईपीएफ का पैसा शेयरों व म्यूचुअल फंड जैसे अन्य विकल्पों की ओर उन्मुख होने लगा था। इससे ईपीएफ दावों की संख्या अचानक बढ़ गई थी और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन यानी ईपीएफओ इन बढ़े दावों के निपटारे में अक्षम साबित हो रहा था। शेयर बाजारों में लगातार तेजी का रुख बना हुआ है। इस समय बीएसई का सेंसेक्स साढ़े उन्नीस हजार के करीब है। कुछ बड़ी कंपनियों के शेयर तो अनाप-शनाप रिटर्न दे रहे हैं। म्यूचुअल फंडों की हालत भी सुधरी है और इनमें भी फिर से पैसा लगने लगा है। बाजार सुधरने से इसमें निवेश करने वाले प्राइवेट प्रॉविडेंट फंडों को भी बढ़ावा मिला है। वहीं महंगाई से मोर्चा लेने के लिए रिजर्व बैंक ने इधर लगातार ऐसे कदम उठाए हैं, जिनसे कर्ज के साथ जमा ब्याज दरों को बढ़ावा मिला है। इनके तहत रेपो, रिवर्स रेपो दरों के अलावा सीआरआर में वृद्धि की गई है। यहां तक कि बुधवार को ईपीएफ पर ब्याज दर में वृद्धि के फैसले के अगले ही दिन गुरुवार को रेपो और रिवर्स रेपो दरों में फिर बढ़ोत्तरी कर दी गई। इससे हाल ही में बढ़ चुकी बैंकों की फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) की ब्याज दरों में एक बार फिर इजाफा होगा। यह साढ़े आठ से नौ फीसदी हो सकती है। ऐसे में कर्मचारी ईपीएफ से रकम निकाल कर एफडी में पैसा लगाएंगे। दूसरी ओर ईपीएफ पर पिछले कई सालों से साढ़े आठ प्रतिशत रिटर्न ही मिल रहा है। इससे लोगों में ईपीएफ का पैसा निकालने और उसे बाजार में लगाने की प्रवृत्ति बढ़ रही थी। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2006-07 में जहां 25.76 लाख लोगों ने ईपीएफ से पैसा निकालने का आवेदन दिया था, वहीं 2008-09 में यह संख्या बढ़कर 34.73 लाख और 2009-10 में चालीस लाख के करीब पहंुच गई थी। इससे ईपीएफ के पांच लाख करोड़ रुपये के कोष (कॉर्पस) को तो क्षति पहंुच ही रही थी, ईपीएफओ के लिए बढ़े दावों का निपटारा भी मुश्किल हो रहा था। वैसे भी ईपीएफओ के पास कर्मचारियों की कमी है। लगभग 26 हजार स्वीकृत पदों के मुकाबले वह केवल 20 हजार कर्मचारियों से काम चला रहा है। ईपीएफ की ब्याज दरें बढ़ाने से एक साथ कई मकसद पूरे हो गए हैं। इससे जहां दावों की बाढ़ पर रोक लगेगी, वहीं ईपीएफ ग्राहक भी संतुष्ट होंगे। आने वाले विधानसभा चुनावों में संप्रग के घटक दलों को अलग से इसका फायदा मिलेगा(संजय सिंह,दैनिक जागरण,दिल्ली,17.9.2010)।
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