सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि मंत्री या अन्य लोगों की सिफारिश पर मनमाने तरीके से उपभोक्ता फोरम के सदस्यों की नियुक्ति नहीं की जा सकती है।
न्यायाधीश जीएस सिंघवी और एके गांगुली की पीठ ने कहा कि सदस्यों की नियुक्ति के लिए बनाई गई चयन समिति की अनुशंसा मानने को राज्य सरकार बाध्य नहीं है। तथापि, उसे सुझावों को नहीं मानने के उचित कारण देने होंगे और उसकी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।
पीठ ने केरल हाई कोर्ट के उस आदेश को रद करते हुए निर्णय दिया जिसमें उसने केरल राज्य उपभोक्ता शिकायत निवारण आयोग के सदस्य के रूप में चंद्रमोहन नायर की नियुक्ति रद कर दी थी। जार्ज जोसेफ की जनहित याचिका के आधार पर नायर की नियुक्ति रद की गई। ऐसा इस तथ्य के बावजूद किया गया कि उसी कोर्ट की एक
अन्य बेंच ने नायर की नियुक्ति को सही ठहराया था।
पीठ ने कहा कि इस मामले के रिकॉर्ड से पता चलता है कि साक्षात्कार शुरू होने के ठीक पहले उपभोक्ता मामलों के मंत्री की ओर से भेजा गया एक सिफारिशी लिफाफा केवी थॉमस नाम के व्यक्ति ने समिति के चेयरमैन को सौंपा था। थॉमस खुद ही एक उम्मीदवार था। वहीं, याचिका दायर करने वाले जोसेफ का इस मामले से कोई लेना देना नहीं है। पीठ ने नायर की अपील को सही मानते हुए उनकी नियुक्ति को जायज ठहराया(दैनिक जागरण संवाददाता,दिल्ली,11.10.2010)।
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