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13 अक्तूबर 2010

जब बच्चों को पढ़ाने बैठें

प्रत्येक माता-पिता की यह इच्छा व भावना होती है कि उनका बेटा पढ़-लिख कर एक ऐसा इनसान बने जो उनके नाम, प्रतिष्ठा और स्वाभिमान की रक्षा करे क्योंकि हर बच्चा अपने मां-बाप की आशा-आकांक्षाओं का प्रतीक होता है। अनेक माता-पिता ऐसे हैं जिन्होंने अपने जीवनकाल में बहुत धन, सम्मान, ऊंचा ओहदा और यश प्राप्त किया है। लेकिन इन सभी उपलब्धियों से आपके बच्चों को कोई लेना-देना नहीं है।

अब सवाल यह उठता है कि कितने ऐसे माता-पिता हैं जो अपने बच्चों को सफल बनाते हैं। बच्चों को स्कूल में एडमिशन दिलाना, उनके लिए अच्छे वातावरण की व्यवस्था, एक अच्छे शिक्षक की व्यवस्था करना, ये सब व्यवस्थाएं बच्चे की सफलता दिलाने की गारंटी नहीं मानी जा सकती हैं। हर बच्चे की यह इच्छा होती है कि जब वह स्कू ल से लौटे तो उसके माता-पिता, चाचा-ताऊ उसे उचित सम्मान, प्यार व प्रशंसा प्रदान करें। इससे बच्चे को यह लगने लगता है कि घर में उसके माता-पिता हैं, परिवार में सभी अपने हैं। मेरा सभी ख्याल रखते हैं, कुछ भी पराया नहीं है और यह मेरा घर परिवार है। इन सभी बातों से बच्चों में आत्मविश्वास का स्तर बढऩे लगता है। कई माता-पिता तो ऐसे है जो बच्चों से घर में जरूरी सामान खरीदने से पहले उनसे सलाह करते हैं, राय लेते हैं। लेकिन घर में बच्चे को माता-पिता का प्यार प्रोत्साहन व मार्गदर्शन नहीं मिलने पर उसमें हीनभावना की गांठ बन पनपने लगती है जो बच्चे के भविष्य को तहस-नहस कर देती है।

बच्चे को विद्यालय भेजने से पहले प्यार से विदा करना, विद्यालय से लौटने पर मुस्कुराते हुए, पीठ थपथपाते हुए माता-पिता घर में स्वीकार नहीं करते तो ऐसे में उसका कोमल मन तार-तार होकर टूट जाता है । माता-पिता की थोड़ी-सी उपेक्षा बच्चे के विकास को अवरुद्ध कर देती है। माता-पिता की उपेक्षा से यदि बच्चे का मन टूटना शुरू हो जाएगा तो उसे बचाना मुश्किल होगा।

परीक्षा के बाद बच्चे को रिजल्ट आने पर माता-पिता उसे मुस्कुराते हुए स्वीकार करेंगे तो अगली कक्षा के लिए अपने आप तैयार हो जाएगा। किसी विषय में कम अंक मिलने पर बच्चे पर फटकार लगाने व क्रोध भरी नजरों से देखने पर उसके मन को दुख पहुंचता है। ऐसा व्यवहार माता-पिता अपने बच्चों से न करें। अभिभावक की थोड़ी-सी भी जागरूकता बच्चे के जीवन को सफलता की सीढिय़ों तक ले जा सकती है। बच्चे के विकास में शिक्षक की भूमिका भी कम नहीं आंकी जा सकती। जो शिक्षक बच्चों को अपना विषय मनोरंजन पूर्ण ढंग से पढ़ाते हैं तब बच्चे अधिक बातों को ग्रहण करते है। यदि शिक्षक क्रोध की मुद्रा में बच्चों को भय और डर दिखाकर पढ़ाता है तो ऐसे में उनकी मस्तिष्क की धमनियां सिकुड़ जाती हैं परिणामस्वरूप बच्चा किसी बात को सुगमता से ग्रहण नहीं कर पाता। अत: कुशल अध्यापक का यह कर्तव्य है कि वह बच्चों को अधिक निडर व प्रसन्न रखने का प्रयास करे। माता-पिता व अध्यापक बच्चे के विकास की धुरी माने गए हैं, इन्हें बच्चों का मित्र बनकर उनकी समस्याओं का समाधान करना है(डॉ. एल.आर.दहिया,दैनिक ट्रिब्यून,13.10.2010)।

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