सरकार द्वारा दिया गया सबको शिक्षा सबको सम्मान का नारा जो सर्वशिक्षा अभियान से ताल्लुक रखता है, की जमीनी सचाई से उत्तरप्रदेश के वे तकरीबन २ करोड़ बच्चे वाकिफ हैं जो शिक्षा के अधिकार से महरूम हैं। सरकारी सर्वे कहता है कि प्रदेश में ६ से १४ वर्ष के उम्र के करीब पौने ६ करोड़ बच्चे हैं। इनमें से करीब पौने चार करोड़ बच्चे स्कूलों में पढ़ते हैं, बाकी बाहर हैं। पर बाहर का आँकड़ा सरकार सार्वजनिक नहीं करती। इस आँकड़े की शायद किसी को जरूरत भी न हो क्योंकि ढाबे पर काम करनेवाला छोटू, रेडलाइट पर किताब बेचने वाला मासूम बच्चा, ८ साल का वह बच्चा जो गलियों में भीख माँग रहा है, की हालत सब सार्वजनिक करती नजर आती है। ये सब बाकी बचे आँकड़ों की भरपाई करते हैं। जबकी इनकी भी आँखों में औरों की तरह ऊँची उड़ान के सपने हैं।
उत्तरप्रदेश ही नहीं, बल्कि कई राज्य ऐसे हैं जो सबको शिक्षा के नारे से कोसों दूर हैं। बरेली का राजू अपनी पाँचवीं तक की पढ़ाई पूरी कर चुका है। पढ़ने में काफी होशियार भी है पर छठी कक्षा के बाद उसके पिता इसलिए नहीं पढ़ाना चाहते हैं कि उनके पास अब पैसे नहीं हैं। राजू के पिता प्रेम वर्मा एक प्राइवेट कंपनी में ड्राइवर हैं। उनके दो और भी बच्चे हैं। प्रेम वर्मा को ३ हजार रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता है। एक हजार रुपए किराए के मकान में चले जाते हैं और ५ सौ रुपए दूध के खर्च और बाकी महीने भर के राशन पर खर्च हो जाते हैं। ऐसे कई परिवार हैं जो गरीबी के कारण अपने बच्चे को शिक्षित नहीं कर पाते हैं। फिर भी सरकार द्वारा जितनी स्कीम शिक्षा के लिए चलाई जाती है, उनमें गुणवत्ता न के बराबर होती है। पूरे उत्तरप्रदेश में १,९५,९४० प्राइमरी स्कूल हैं जिनमें तकरीबन १७,६३,४६० नियमित अध्यापक और ९,८९,३९० शिक्षा मित्र हैं।
सर्वे की जाँच में यह भी सामने आया है कि अधिकतर अध्यापक ड्यूटी के वक्त अपने घरों में पाए गए हैं। सही मायने में देखा जाए तो प्राइमरी स्तर की शिक्षा हर बच्चों के लिए मजबूत बुनियाद होती है जिसके जरिए वह भविष्य की सीढ़ी चढ़ता है, लेकिन उनकी बुनियाद ही कमजोर हो जाए तो भविष्य क्या होगा, शायद सबको पता है। सबसे बड़ी समस्या सरकारी स्कूलों की शिक्षा में गुणवत्ता सुधारने और उनकी निजी स्कूलों के साथ समान स्तर पर लाने की है जिसमें अमीर और गरीब, गाँव और देहात के बच्चों की पढ़ाई के स्तर का भेद खत्म हो।
शिक्षा में आज भ्रष्टाचार भी खूब फल-फूल रहा है। मिड डे मिल के तहत जो खाना बच्चों को मिलना चाहिए वह नहीं मिल पा रहा है। कई ऐसे खाद्य पदार्थ हैं जिनको बीच में ही हजम कर लिया जाता है। बच्चों में बँटने वाली छात्रवृत्ति यानी वजीफा में हुए कई घोटाले प्रकाश में आए हैं। इस तरह के व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना आज सबसे जरूरी लगता है(शेर सिंह,नई दुनिया,13.10.2010)।
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