अब पंजाब यूनिवर्सिटी के किसी भी रीजनल सेंटर पर टीचिंग की नौकरी करने के लिए पंजाबी भाषा का आना ज़रूरी होगा। रविवार को सीनेट की बैठक में इस संबंध में एक प्रस्ताव लाया गया कि भविष्य में लेक्चरर अथवा असिस्टेंट प्रोफेसर लगने के लिए उन अभ्यर्थियों को भी पंजाबी की दसवीं के स्तर की परीक्षा पास करनी होगी जो गैर पंजाबी भाषी राज्यों से हैं अथवा जिन्हें पंजाबी पढऩा-लिखना नहीं आता।
कुलपति प्रो. आरसी सोबती ने जब इस आशय का प्रस्ताव सदन में रखा तो ज्यादातर सदस्यों ने इसका समर्थन किया और कहा कि पंजाब के जो छात्र पंजाबी मीडियम से पढ़ते हैं, उन्हें कर्नाटक या तमिलनाडु अथवा किसी अन्य गैर पंजाबी भाषी प्रदेश से आया प्राध्यापक पंजाबी में कैसे पढ़ाएगा। इससे पहले कई अन्य राज्यों के टीचर इन रीजनल सेंटरों पर पंजाबी में लिखी गयी असाइनमेंट चेक भी करते रहे हैं। यह समझ से परे है कि उन्होंने पेपरों का मूल्यांकन अथवा असाइनमेंट का मूल्यांकन कैसे किया होगा। पंजाब यूनिवर्सिटी के सभी पांचों रीजनल सेंटर ग्रामीण क्षेत्रों में हैं और वहां आमतौर पर ग्रामीण बच्चे ही पढऩे आते हैं जो अपनी पढ़ाई का माध्यम पंजाबी चुनते हैं। मगर गैर पंजाबी भाषी शिक्षकों के कारण न तो छात्रों को टीचर की बात समझ आती है और न ही टीचर को यह समझ आता है कि छात्र क्या चाहते हैं। अब नये लगने वाले शिक्षकों को नियुक्ति के दो साल के भीतर मैट्रिक स्तर की पंजाबी की परीक्षा पास करनी होगी अन्यथा नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है।
उल्लेखनीय है कि सरकारी कालेजों और पंजाब में स्थित अन्य विश्वविद्यालयों में मैट्रिक स्तर की पंजाबी का ज्ञान पहले से ही अनिवार्य कर रखा है। वहां पर भी नियुक्ति के दो साल के भीतर प्राध्यापकों को यह टेस्ट पास करना होता है
कुछ सदस्यों ने प्राइवेट कालेजों में भी पंजाबी की शर्त को अनिवार्य करने की बात कही मगर सदन ने इसे अपने क्षेत्राधिकार से बाहर की बात कहकर नकार दिया।
हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि हिंदी या अंग्रेजी विषय के प्राध्यापकों के लिए भी क्या पंजाबी की परीक्षा अनिवार्य होगी क्योंकि उनका पढ़ाई का माध्यम पंजाबी नहीं हो सकता। इस विषय पर आधिकारिक टिप्पणी को कुलपति उपलब्ध नहीं हो सके(डा. जोगिन्द्र सिंह,दैनिक ट्रिब्यून,13.10.2010)।
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