गढ़वाल मंडल विकास निगम में अधिकारी के पद पर नियुक्तियों में धांधली का मामला सामने आया है। निगम सुपरवाइजर और प्रबंधक वेलफेयर एसोसिएशन ने इन धांधलियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। एसोसिएशन के कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि निगम में अपने चहेतों को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से मानकों के विपरीत लोक सेवा आयोग के पदों पर सीधी भर्ती की गई है, जिससे अनुभवहीन लोगों को उच्च पदों पर बैठा दिया गया है।
विदित हो कि 21 मार्च 2010 को गढ़वाल मंडल विकास निगम ने आठ पदों के लिए विज्ञप्ति जारी की, जिसमें चार पद प्रथम श्रेणी के व छह पद द्वितीय श्रेणी के थे। जिसमें एक पद चीफ अडल्ट आफीसर, एक पद जनरल मैनेजर आपरेसनल टूरिज्म, एक पद मैनेजर एग्रीकल्चर व मार्केटिंग आफीसर एक पद जनरल मैनेजर टूरिज्म प्रशासन, 3 पद चीफ रिजनल मैनेजर, एक पद अकाउंट आफिसर मैनेजर आपरेशन रोपवे की थी। विभाग द्वारा पहली गलती इन पदों की विज्ञप्तियां जारी करने में हुई। विभाग ने इन पदों की जो विज्ञप्तियां जारी की उनमें अखबारों में अलग और नेट पर अलग तरह के मानकों की विज्ञप्तियां जारी की।
दूसरी गलती साक्षात्कार में अंक तालिका के साथ छेड़छाड़ का बड़ा मामला सामने आया है। डीजीएम पद के सुनील पंत को 15 अंक मिले थे लेकिन उसे लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से 15 को 75 कर दिया गया। इसी तरह आशीष शर्मा को 30 अंक मिले जिसे बाद में 80 कर दिया गया। अंकतालिका को देख कर फर्जी तरीके से ओवरराइटिंग कर बड़ाए गए इन अंकों को साफ पहचाना जा सकता है। इसके अलावा आवेदन कर्ता सुनील पंत ने पांच साल का कम्प्यूटर का अनुभव दिखाया है जो कि पूरी तरह से फर्जी पाया गया। सुनील पंत ने 26 जनवरी 2007 में इग्नू से होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया लेकिन उससे पहले 15 मई 2005 को होटल मैनेजमेंट की फर्जी डिग्री दिखा दी। नियमानुसार आवेदन के लिए पांच साल का अनुभव होना जरूरी था। जांच कमेटी द्वारा इन सभी पहलुओं की अनदेखी की गई है। सामान्य सी गलती को भी देखने की जरूरत नहीं समझी गई है। जबकि छह आवेदकों को आवेदन में गलती के चलते बाहर कर दिया गया था।
इसी तरह आशीष शर्मा ने फर्जी डिप्लोमा दिखाकर नियुक्ति हासिल की। इस पद के लिए पर्यटन डिग्री अथवा डिप्लोमा तथा पर्यटन व्यवसय और कार्मिक प्रशासन में पाचं वर्ष का अनुभव अनिवार्य किया गया था लेकिन आशीष शर्मा ने नेपाल के त्रिभुवन विवि व पूर्वाचल विवि में 1998 से 2009 तक प्रवक्ता पद का अनुभव संलग्न किया जबकि डीजीएम प्रशासन के पद के लिए प्रवक्ता पद के अनुभव का कोई अर्थ नहीं है। जबकि इसी पद पर एक आवेदक पुष्कर सिंह नेगी ने भी आवेदन किया था , जिसके पास गढ़वाल विवि में पर्यटन प्रवक्ता के पद पर पढ़ाने का अनुभव था लेकिन निगम ने उसका आवेदन यह कहकर स्वीकार नहीं किया कि उसके पास पर्यटन का अनुभव नहीं है। ऐसे में साफ साफ ही यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितने निडर होकर धडल्ले से अयोग्य लोगों को अधिकारी पद पर नियुक्त किया गया। ऐसी ही एक आवेदनकर्ता बबीता बड़ोला ने चीफ रिजनल मैनेजर के पद के लिए आवेदन किया। बबीता के कम्पयूटर टेस्ट में 50 में से 16 नंबर आए और रिटन टेस्ट में 157 में से 31 कुल 207 में से 47 नंबर आए, जो कि पासिंग नंबर भी नहीं कहे जा सकते। इस पद के लिए जो योग्यता मांगी गई थी उसमें एमबीए का रेगुलर कोर्स, होटल मैनेजमेंट और साथ में पीजी डिग्री, व एमएस आफिस की पूरी जानकारी, किसी चार सितारा होटल में 3 साल सुपरवाइजरी का अनुभव और 2 साल का किसी पीएटीए से अनुमति प्राप्त ट्रेवल एजेंसी का प्रमाण पत्र मांगा गया था लेकिन बबीता बड़ोला के पास मात्र शहर के एक सरकारी होटल का रिसेप्शनिस्ट का प्रमाण पत्र था। सूचना द्वारा जब बबीता की रिटन टेस्ट की कापी देखी गई तो उसमें सभी प्रश्नों के हल अंग्रेजी में देने के बजाय हिंदी में दिए गए थे। इसके अलावा किसी भी सवाल का सही जवाब न दिए जाने पर भी उसमें पूर्ण अंक दिए गए थे। इन सभी गलतियों को जानबूझकर अनदेखा कर बबीता बड़ोला को चीफ रिजनल मैनेजर पद के लिए नियुक्त कर दिया गया(राजेन्द्र जोशी,दैनिक ट्रिब्यून,15.10.2010)।
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