उत्तराखंड में शिक्षकों की तबादला नीति को अब और ज्यादा लटकाया नहीं जा सकेगा। स्कूल गवर्नेस में खामी और शिक्षकों की गैर मौजूदगी राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (रमसा) के तहत केंद्रीय इमदाद में कटौती का सबब बनेगी। माध्यमिक शिक्षा में सुधार की जमीनी कसरत पर ही सूबे का मोटी सहायता पाने का ख्वाब पूरा होगा। रमसा के तहत मदद के साथ ही केंद्र सरकार ने उसकी गाइड लाइंस के अनुपालन पर नजरें गड़ा दी हैं। लिहाजा, शिक्षा में संस्थागत सुधारों से अब ज्यादा देर तक मुंह मोड़ना मुमकिन नहीं रह गया है। इससे स्कूल गवर्नेस और दूरदराज के स्कूलों में शिक्षकों की मौजूदगी पर टालमटोल की नीति आगे नहीं चलने वाली। रमसा की प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड (पीएबी) बैठक में केंद्र सरकार की सख्ती को देखते हुए स्कूलों में शिक्षकों की मौजूदगी बढ़ाने के लिए रिक्त पदों पर नियुक्ति के साथ ही ठोस तबादला नीति को लेकर राज्य सरकार की जवाबदेही बढ़ गई है। इन प्रावधानों को जल्द अमल में लाना होगा। पीएबी में इस मामले में राज्य मुश्किलों का सामना कर चुका है। बीते वित्तीय वर्ष में जूनियर हाईस्कूल से उच्चीकृत 23 हाईस्कूलों में रिक्त पदों पर शिक्षकों की तैनाती का ब्योरा देना पड़ा। केंद्र ने यह भी साफ कर दिया है कि महज कागजी ब्योरा देकर काम नहीं चलाया जा सकता। ठोस सबूतों की नींव पर ही राज्य के आगे के दावों पर यकीन किया जाएगा। नौबत यहां तक आ गई कि शिक्षा महकमे को प्राइमरी शिक्षकों से एलटी में पांच फीसदी शिक्षकों के समायोजन को लेकर प्रमाण पेश करने पड़े। प्रदेश में तकरीबन 1770 सरकारी माध्यमिक स्कूलों में दूरदराज में तो शिक्षकों की कमी है, जबकि सुविधाजनक इलाकों में मानक से ज्यादा शिक्षक कार्यरत हैं। हाईस्कूलों में प्रधानाध्यापकों, इंटर कालेजों में प्रधानाचार्यो समेत एलटी और प्रवक्ता के पद रिक्त हैं। सरकार ने अब रिक्त पदों पर भर्ती और शिक्षकों के तबादले की ठोस नीति पर फोकस किया है(रविंद्र बड़थ्वाल,दैनिक जागरण,देहरादून,12.10.2010)।
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