उत्तरप्रदेश में उच्च शिक्षा का रंग-ढंग राजभवन को रास नहीं आ रहा है। चाहे वह राज्य विश्वविद्यालयों का वित्तीय प्रबंधन हो, पाठ्यक्रमों में समरूपता का मुद्दा हो, शिक्षण संस्थानों के मूल्यांकन का प्रकरण हो, शोधकार्यों की गुणवत्ता हो या फिर कक्षाओं में छात्रों की घटती उपस्थिति, राजभवन इन सभी मामलों में मौजूदा स्थिति से संतुष्ट नहीं है। बिना संबद्धता या मान्यता के छात्रों को प्रवेश देने, स्वीकृत से अधिक संख्या में विद्यार्थियों को दाखिला, परीक्षाओं में नकल होने, समय से परीक्षाफल घोषित न करने और कम्प्यूटरीकरण के प्रति अपनाये जा रहे उदासीन रवैये भी राज्यपाल की चिंता का विषय हैं। यही वजह है कि राजभवन ने आगामी नौ नवम्बर को सभी राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के साथ योजना भवन में होने वाली बैठक के लिए जो रूपरेखा तय की है, उसमें यह बिंदु चर्चा का प्रमुख विषय होंगे। बैठक के सिलसिले में राजभवन की ओर से शासन को जो रूपरेखा भेजी गई है, उसमें कहा गया है कि अक्सर ऐसे प्रकरण सामने आये हैं, जहां विश्वविद्यालय तथा संबद्ध कालेजों ने विभिन्न कोर्स में एआईसीटीई, एनसीटीई, बीसीआई जैसी शीर्ष संस्थाओं से मान्यता/संबद्धता प्राप्त किये बिना छात्रों को दाखिला दिया गया और उनकी परीक्षा भी करायी। ऐसे मामले में दोषी व्यक्तियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जानी चाहिये। प्राय: विश्वविद्यालयों के विभागों व संबद्ध कालेजों में विभिन्न कोर्स में अनुमन्य संख्या से अधिक छात्रों को प्रवेश दे दिया जाता है, जबकि ऐसे मामलों में हाईकोर्ट व शासन ने दोषी व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश दिये हैं। अक्सर देखा गया है कि विश्वविद्यालयों ने अनुमन्य संख्या से अधिक प्रवेशित छात्रों से अतिरिक्त शुल्क लेकर उनकी परीक्षा करायी है। ऐसे मामलों में दोषी अधिकारियों, प्रबंधकों व कर्मचारियों के खिलाफ विधिक कार्यवाही होनी चाहिए। राजभवन ने इस बात पर भी चिंता जतायी है कि यूजीसी द्वारा विश्वविद्यालय स्तर पर विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए पाठ्यविवरण संस्तुत किये जाने के बावजूद विश्वविद्यालयों के पाठ्यविवरणों में समरूपता नहीं है। राजभवन ने यह भी कहा है कि सभी विश्वविद्यालयों में कम्प्यूटर संबंधित विभागों की स्थापना के बावजूद विश्वविद्यालयों में कम्प्यूटरीकरण की स्थिति अत्यंत शोचनीय है। शोधकार्यों की गुणवत्ता पर चिंता शोधकार्यों की गुणवत्ता पर भी फिक्र जतायी गई है। यह भी कहा गया है कि शोधकार्य के लिए पंजीकृत छात्रों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिसमें समय से शोधग्रंथ की मूल्यांकन आख्यायें विश्वविद्यालय में प्राप्त न होना प्रमुख है। फर्जी अंकपत्रों और उपाधि पत्रों के मामलों पर अंकुश लगाने के लिए विश्वविद्यालयों को इन्हें तैयार करने में ऐसी तकनीक का प्रयोग करने की सलाह दी गई है ताकि यह धांधली रोकी जा सके। शिक्षकों की लम्बी छुट्टियों पर तल्खी एजेंडे में शामिल एक बिंदु में यह भी उल्लेख किया गया है कि विश्वविद्यालयों के शिक्षक अवकाश की अनुमति लेने के बाद अनधिकृत रूप से लम्बे समय तक अनुपस्थित रहते हैं और अन्य स्थानों पर अपनी सेवाएं उपलब्ध कराते हैं। वे इच्छानुसार विवि लौटकर पूर्व पदों पर अपनी सेवाएं देने के लिए खुद को प्रस्तुत करते हैं। ऐसे शिक्षकों के खिलाफ नियमानुसार अनुशासनिक कार्रवाई की जानी चाहिए(राजीव दीक्षित,दैनिक जागरण,लखनऊ,12.10.2010)।
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