प्रदेश के महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में सीधे चुनाव होना अब निश्चित हो गया है। अगले साल प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराना सरकार की कानूनी मजबूरी भी हो गई। जबकि इस साल सभी जगह अप्रत्यक्ष प्रणाली से ही छात्र संघों का गठन किया जाएगा। राज्य शासन द्वारा की जा रही तैयारियों पर उच्च न्यायालय ने भी मोहर लगा दी है। इसके साथ ही सरकार उच्च न्यायालय की अवमानना से भी बच गई। उच्च शिक्षा विभाग के लिए राहत भरा आदेश सुनाया हाईकोर्ट के जस्टिस केके लाहोटी और जस्टिस सुषमा श्रीवास्तव की युगल पीठ ने। राज्य शासन द्वारा प्रस्तुत जवाब सुनकर अदालत ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा दायर अवमानना याचिका भी खारिज कर दी। सूत्रों के मुताबिक राज्य शासन ने अदालत के सामने माना कि लिंगदोह कमेटी द्वारा दी गई समय सीमा की गणना में चूक हुई है। हमने सत्र 2011-12 से प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव की कार्ययोजना बनाई है। यह गलती जानबूझकर नहीं की गई है। इसलिए सद्भावनापूर्वक गलती मानी जाए। अदालत ने भी सरकार की तैयारियों को देखते हुए परिषद की याचिका खारिज कर दी। इसके साथ ही अगले सत्र से प्रदेश के कालेजों और विश्वविद्यालयों में प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव होना निश्चित हो गया है। अदालत के इस कदम से शासन ने भी राहत की सांस ली है। शासन की ओर से महाधिवक्ता आईडी जैन ने पैरवी की। जबकि परिषद का पक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता राजेंद्र तिवारी ने रखा।
इसलिए हुई अवमानना :
उच्च न्यायालय ने पिछले साल परिषद की याचिका पर ही अगले साल से प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराने का आदेश दिया था। मगर राज्य शासन द्वारा इस बार भी अप्रत्यक्ष प्रणाली से ही चुनाव कराए जा रहे हैं। इसमें चुनाव की जगह पदाधिकारियों का चयन किया जाना है। शासन का आदेश जारी होते ही परिषद के राष्ट्रीय मंत्री अश्विनी परांजपे ने अवमानना के साथ ही एक जनहित याचिका भी दायर कर दी थी। परिषद ने अपनी याचिका में अदालत को बताया कि लिंगदोह कमेटी ने अपनी रिपोर्ट जारी होने के पांच साल के भीतर सीधे चुनाव कराने की अनुशंसा की है। यह रिपोर्ट वर्ष 2005 में आ गई थी। इसके तहत सत्र 2010-11 में सीधे चुनाव होने थे। मगर सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया(दैनिक जागरण,भोपाल,15.10.2010)।
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