यह रांची विवि का बहुद्देशीय परीक्षा भवन है. यहां इन दिनों पार्ट वन की कॉपियां जांची जा रही हैं. अक्सर लोग कहते हैं कि कई विषयों में अंक उत्तर की लंबाई देख कर दिये जाते हैं. यह सच है. करीब डेढ़ सौ में से आधे परीक्षक 15-20 सेकेंड में एक कॉपी जांच रहे हैं. धड़ाधड़. सबको अंदाज से नंबर दे कर बंडल-बंडल कॉपियां निबटा रहे हैं.
यहां वह सब हो रहा है, जो किसी मंडी में होता है. हर परीक्षक के लिए एक टेबुल निर्धारित है. उसे वहीं बैठ कर कॉपियां चेक करनी हैं, लेकिन ठेकेदार-माफिया टाइप लोग टेबुल-टेबुल घूम कर परीक्षकों को चुटका थमाते हैं, जिसमें परीक्षार्थियों के रोल नंबर होते हैं. फिर शुरू होता है 10 को 30 बनाने का खेल.
डीन के टेबुल पर संभवत बेड़ो के टी चक्रवर्ती डेरा जमाये हैं. सिल्ली के वाइ महतो भी टेबुल-टेबुल घूम रहे हैं, बेचैन हैं. विवि में अपने तगड़े नेटवर्क के लिए ख्यात एस गुप्ता नामी माफिया हैं. पक्की सूचना है कि उन्होंने करीब डेढ़ सौ बच्चों को पास करवाने का ठेका लिया है. गौरतलब है कि दबंग माफिया की कई बसें चलती हैं.
साहब परीक्षकों को हड़काते हैं कि अगली बार कॉपी जांचना है कि नहीं. फिर शिक्षक घिघियाते हुए गुप्ताजी का आदेश मान लेते हैं. एफ जहांगीर, बीएन महतो व आरएल नाग भी परीक्षा भवन में चुटका लेकर घूम रहे हैं. स्क्रूटनी का एक आदमी एम भगत भी इनके साथ है.
सिसई के डी यादव व बुंडू के महेश ने भी ठेके ले रखे हैं. महेश मंच पर, जहां मैथ की कॉपी चेक हो रही है, टेबुल-टेबुल बैठ रहे हैं. एक लाल दास की जगह कोई और कॉपी चेक कर रहा है. पता चला कि वह घर पर इन कॉपियों पर केवल हस्ताक्षर करते हैं. इसी बीच, एक परीक्षक पॉकेट से हजार-हजार के नोट निकाल कर वहीं एक दूसरे परीक्षक को थमाने लगे. यह सब करते हुए जो थक रहे थे, चाय व बालूशाही का मजा लेने निकल जाते थे. और इस तरह झारखंड के युवाओं का भविष्य तय हो रहा है(प्रभात खबर,रांची,12.10.2010).
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