केन्द्र सरकार से पद और पैसे मिलने के सुनहरे ख्वाब के चक्कर में शिक्षकों का आज परेशानी में गुजर रहा है। शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं और विद्यालय नाम मात्र के सिद्ध हो रहे हैं। मामला राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान का है, जिसके पद और राशि के चक्कर में राज्य सरकार ने पग-पग पर विद्यालय तो क्रमोन्नत कर दिए, लेकिन अभी तक यहां पद और सुविधाओं का अभाव है। पद और सुविधाएं नहीं होने के बाद अब परिस्थितियां विकट होती जा रही है। विद्यालय क्रमोन्नत होने के बाद जिन शिक्षकों को पातेय वेतन पर पदोन्नत करके प्रधानाचार्य बनाया गया था उनके वेतन के भी लाले पड़ने लगे हैं।
बजट निर्धारण समिति की ओर से सभी नव क्रमोन्नत माध्यमिक विद्यालयों के प्रधानाचार्यो के सालभर के वेतन के लिए 1 लाख रूपए स्वीकृत किए गए, जो शुरूआती तीन माह में ही खत्म हो गया। अब कई जिलों में बजट के अभाव में प्रधानाचार्यो का वेतन अटक गया है। कोटा में ऎसे 36 विद्यालयों के प्रधानाचार्यों को पिछले तीन माह से वेतन नहीं मिल रहा है। बजट का अभाव होने के कारण कोषागार से इनके बिल पास नहीं हो रहे हैं। अब त्योहार आने से इन प्रधानाचार्योü के माथों पर चिंता की लकीरें नजर आने लगी है।
प्रधानाचार्य पद पर पातेय वेतन पर पदोन्नत हुए शिक्षकों का मासिक वेतन 20 से 40 हजार के बीच है। ऎसे में एक लाख रूपए की स्वीकृति के बाद कहीं यह राशि तीन तो कहीं 4 माह में खत्म हो गई।
बजट की स्थिति स्पष्ट नहीं होने के कारण वेतन अटका हुआ है, यदि ये प्रधानाचार्य पूर्व में बजट बढ़ाने के लिए लिखकर दे देते तो बजट बढ़ जाता, अभी भी परिस्थितियों का आंकलन करते हुए बजट की मांग की जानी चाहिए, ताकि बजट स्वीकृत करवाया जा सके- मधु सोरल, उपनिदेशक, माध्यमिक शिक्षा
राज्य सरकार ने राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान की पालना में हजारों विद्यालयों को उच्च प्राथमिक से माध्यमिक में क्रमोन्नत कर दिया। क्रमोन्नत करने के साथ ही इन विद्यालयों में प्रधानाचार्योü व अन्य पदों की जरूरत पड़ी, ये पद स्वीकृत नहीं थे। राज्य सरकार करती तो इन्हें बड़ी राशि वेतन के रूप में देनी पड़ती। राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत पदों की स्वीकृति का इंतजार किया जाने लगा। कामचलाऊ तौर पर पातेय वेतन पर प्रधानाचार्य लगा दिए गए, उच्च प्राथमिक के स्टाफ से ही माध्यमिक स्तर तक के विद्यालय संचालित किए जा रहे हैं(राजस्थान पत्रिका,कोटा,13.10.2010)।
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