हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड कर्मचारी महासंघ ने फर्जीवाड़े के लिए बोर्ड प्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया है। महासंघ ने बोर्ड प्रबंधन पर और भी कई संगीन आरोप लगाए हैं।
महासंघ ने आरोप लगाया है कि शिक्षा बोर्ड में आने वाले अध्यक्ष व सचिव पिछले सालों के अध्यक्ष व सचिव के मुकाबले जल्दी परीक्षा परिणाम घोषित करना चाहते थे, जबकि इसके लिए माकूल स्टाफ नहीं था। हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड कर्मचारी महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष मनोहर ठाकुर ने बैठक के बाद पत्रकारों से बातचीत में कहा कि पिछले माह शिक्षा बोर्ड के साथ दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी और इससे शिक्षा जगत शर्मसार हुआ। उन्होंने कहा कि वर्ष 1969 से शिक्षा बोर्ड का सिस्टम चला आ रहा है। 15-20 सालों से सचिव व अध्यक्ष बोर्ड में जो भी आए उन्होंने अपने से पिछले अध्यक्ष व सचिवों से पहले परीक्षा परिणाम घोषित करने का ट्रेंड शुरू किया। उन्होंने बताया कि वर्ष 1991 से यह होड़ शुरू हुई कि पहले वाले अध्यक्ष व सचिव से वह जल्दी अपना परिणाम देंगे। वर्ष 1991 में 575 पद स्वीकृत थे, जिनमें से 484 पद भरे थे जबकि 92 पद रिक्त थे और उस वक्त 1,95,527 परीक्षार्थी छात्र थे।
वर्ष 1991 से लेकर 2010 तक बोर्ड में 18 क्लर्को की नियुक्तियां 1991 में हुई और 11 साल तक सर्विस कमेटी की बैठक नहीं हुई। 2002 में 28 पद भरे गए और अब जून 2010 में 50 लिपिक भरे गए हैं और 40 पदों को भरने की प्रक्रिया चल रही है। वर्ष 2010 में 665 पद सृजित हैं, जिनमें से 422 भरे हैं और 243 पद रिक्त हैं।
उन्होंने बताया कि कि शिक्षा बोर्ड ने प्रवेश पत्रों को लेने के लिए निर्धारित मापदंड तय किए हैं। एक सेट यानि कि दो क्लर्को के लिए 4500 से 5500 प्रवेश पत्र देखने होते हैं, लेकिन बीते समय में एक सेट में दो क्लर्को को 9000 से 11000 तक के प्रवेश पत्र देखने पड़ रहे हैं। उन्होंने 2003 में परीक्षार्थी छात्रों का आंकड़ा पांच लाख से ऊपर हो गया। चार क्लर्को की निगरानी के लिए एक अधीक्षक होता था। वर्ष 1991 के मुताबिक जब छात्रों की संख्या बढ़ी तो कर्मचारी भी बढ़ने चाहिए थे।
उन्होंने कहा कि वर्ष 1991 से लेकर अब तक प्रवेश की तिथियां बढ़ती रही हैं, लेकिन पेपर शुरू करने की तिथियां बही रही और परीक्षा का परिणाम भी जल्दी निकालने के आदेश दिए जाते रहे हैं।
उन्होंने कहा कि यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य रहा है कि डायरी ब्रांच के कार्य को ठेके से करवाया गया है। उन्होंने कहा कि जो प्रेक्टिकल परीक्षाओं के बाद में लिए जाते थे, उन्हें पिछले दो सालों से परीक्षा से पहले लिया जा रहा है(दैनिक जागरण,धर्मशाला,13.10.2010)।
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