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14 अक्तूबर 2010

महाराष्ट्रःSC और ST बच्चों की फीस में घोटाला

महाराष्ट्र के समाज कल्याण विभाग ने 'गलती' से तीस करोड़ खर्च कर डाले हैं। यह हसीन गलती उन्होंने अनुसूचित जाति,जनजाति के बच्चों की फीस भरने में की जो कि प्राइवेट स्कूलों में पढ़ रहे थे। मजे की बात कि यह गलती वे कई सालों से कर रहे थे, लेकिन इसका पता विभाग को तब चला जब मुंबई के एक स्कूल ने विभाग द्वारा तीन सालों से फीस न रिइंबर्स करने पर 5 अगस्त को हाईकोर्ट की शरण ली। इसके बाद विभाग ने दो अधिकारियों को निलंबित भी कर दिया। लेकिन इससे मुंबई के हजारों अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ी जाति के बच्चों का भविष्य अधर में लटक गया है, क्योंकि विभाग ने बकाया फीस देने से इनकार कर दिया है।

यही नहीं, इस बीच 2 सितंबर को हाईकोर्ट ने समाज कल्याण विभाग से दो हफ्तों में स्कूलों का बकाया भरने का आदेश दिया। लेकिन 'गलती' बताकर सरकार इस आदेश का पालन करने से बच रही है। सरकार के नादिरशाही आदेश से महानगर के कई स्कूल सकते में हैं, क्योंकि उन्हें लाखों का नुकसान हुआ है।

गोवंडी के पीएल लोखंडे मार्ग पर स्थित श्री नारायण गुरु हाईस्कूल ऐसे ही स्कूलों में से एक है। जहां के 756 बच्चों की तीन साल की फीस सरकार पर बकाया है। स्कूल मैनेजर सलिल कुमार ने एनबीटी को बताया, 'स्कूल में 40 प्रतिशत बच्चे पिछड़ी, अनुसूचित जाति और जनजाति के हैं। समाज कल्याण विभाग ने 2007 से पहले बराबर फीस दी, लेकिन अब उसका कहना है कि हमने गलती से फीस दी है जबकि 1996 के जीआर के हिसाब से पांचवीं में पांच रुपये, छठी में छह और सातवीं में सात रुपये फीस देने का नियम है और विभाग उतना ही दे सकता है। अब फिलहाल कुछ नहीं दिया जाएगा।' बकौल सलिल, तीन सालों में 70 लाख रुपये खर्च हुए हैं। स्कूल बंद होने की नौबत आ गई है।

इस बारे में समाज कल्याण राज्य मंत्री सचिन अहिर का कहना है, 'प्राइवेट स्कूलों की हाई-फाई फीस देने का अधिकार विभाग को नहीं था, लेकिन 2003 से 2007 तक ऐसा हुआ। अधिकारियों ने गलती की है। उन्हें निलंबित भी किया गया है। इससे सरकार को 30 करोड़ रुपये का चूना लगा है।' लेकिन अब बच्चे कहां जाएंगे? जवाब में अहिर ने कहा, 'स्कूल शिक्षा, उच्च शिक्षा और अन्य विभागों के सचिवों की कमेटी स्थिति की समीक्षा कर रही है। हम बच्चों का नुकसान नहीं होने देंगे। दसवीं तक उनकी शिक्षा का प्रबंध किए जाने पर विचार हो रहा है।' अहिर ने दावा किया कि यह गलती केवल महानगर के स्कूलों में हुई है, हालांकि इनकी संख्या से उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की(कंचन श्रीवास्तव,नवभारत टाइम्स,मुंबई,14.10.2010)।

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