की चार रेंज के छब्बीस जिलों में रेल व स्टेशन सुरक्षा के लिए चौबीस घंटे मुस्तैद रहने वाली ग्रुप रिजर्व फोर्स (जीआरपी) में पिछले 56 वर्षो से नई भर्ती नहीं हुई।
फोर्स में जवानों की नफरी के चलते कई चौकियां व थाने सूने हैं। कई स्टेशनों पर जीआरपी की चौकी तक नहीं है। हर जवान पर ड्यूटी का अतिरिक्त भार है। आला अफसर सरकार को हकीकत से रू-ब-रू करा चुके हैं, इसके बावजूद हालात जस के तस हैं। अजमेर, जयपुर, जोधपुर व कोटा रेंज में कई स्टेशनों पर चौकी व गश्त के लिए जवान तक नहीं हैं। ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं जिनमें वारदात से पीड़ित रेलयात्री पुलिस को तलाशते नजर आते हैं। रिपोर्ट दर्ज कराना मुश्किल होता है।
17 थाने, 19 चौकियां: प्रदेश में जीआरपी के 17 थानों व 19 चौकियों में से ज्यादातर में एएसआई स्तर के पुलिस अधिकारी को कमान सौंपी गई है। नफरी के चलते फोर्स को रुटीन वर्क में परेशानी का सामना करना पड़ता है। स्थाई वारंटी पकड़ने के लिए जवानों को तैनात किया जाता है। ऐसी स्थिति में वारंट तामील कराने में परेशानी होती है।
तालमेल न होने से अटकी भर्ती: राजस्थान सरकार व रेलवे बोर्ड में तालमेल नहीं होने से जीआरपी में अब तक भर्ती प्रक्रिया पर ध्यान नहीं दिया जा सका। आला अधिकारियों ने कई बार प्रस्ताव तैयार कर सरकार व रेलवे बोर्ड को भेजे, लेकिन उन पर गौर नहीं किया गया। राज्य सरकार ने वर्ष 2005 में जीआरपी से आठ सिपाहियों के पदों में कटौती कर दी थी। फोर्स को आश्वस्त किया गया कि शीघ्र ही एएसआई स्तर के अधिकारी लगाए जाएंगे। लेकिन अब तक भर्ती नहीं हुई।
धमकियों से बढ़ी परेशानी: पिछले कुछ सालों से लगातार रेलवे स्टेशनों व ट्रेनों को बम से उड़ाने की धमकियां मिल रही हैं। धमकी मिलने के बाद एकाएक सुरक्षा बढ़ा दी जाती है। सभी ट्रेनों व स्टेशनों पर यात्रियों की तलाशी ली जाती है। ऐसे में जवानों को मुख्य ड्यूटी से हटाकर नई जगह तैनात करना पड़ता हैं। इस वजह से जीआरपी व्यवस्था प्रभावित होती है।
आंदोलन के समय पुलिस जाप्ते की कमी रहती है। इससे कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। थानों पर स्टाफ की कमी से अपराधों पर पूरी तरह से अंकुश नहीं लग पाता है। - वीरभान अजवानी, एसपी, जीआरपी(दैनिक भास्कर,अजमेर,14.11.2010)
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