झारखंड के 80 प्रतिशत अंगीभूत कालेजों में स्थाई प्राचार्य नहीं है। कालेजों में स्थाई प्राचार्य नहीं रहने से प्रशासनिक, शैक्षिक और विकास कार्यो पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। एकीकृत बिहार के समय ही वर्ष 94 में प्रार्चार्यो की नियुक्ति हुई थी।
इसके बाद लगातार प्राचार्य रिटायार करते गए लेकिन उनके स्थान पर नियुक्ति नहीं हुई। रिटायर होते प्राचार्यो की जगह प्रभारी प्राचार्य लेते गए। जिन कॉलजों में प्रभारी प्राचार्य हैं, वहां कार्य अधिक प्रभावित हुए हैं। जिन कॉलेजों में प्रभारी प्राचार्य हैं, वैसे कॉलेजों में वोकेशनल कोर्सेज और बीएड पाठ्यक्रम शुरू नहीं हुए। इन कॉलेजों के विद्यार्थी स्नातक के साथ वोकेशनल की डिग्री लेने से वंचित रह गए। यह हाल कोई एक विश्वविद्यालय की नहीं है। राज्य के पांचों विश्वविद्यालयों में तकरीबन एक ही स्थिति है(राकेश,दैनिकभास्कर,रांची,20.11.2010)।
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