सर्वोच्च न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा विद्या उपासक के पक्ष में दिए गए फैसले को गलत करार देते हुए प्रतिवादी की याचिका को खारिज कर दिया है। प्रदेश उच्च न्यायालय ने विद्या उपासकों को पांच साल की नौकरी के बाद नियमित करने का फैसला सुनाया था।
गौरतलब है कि प्रतिवादी ने मार्च 2006 में प्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर प्रदेश सरकार को यह निर्देश देने की गुहार लगाई थी कि जो उसका ट्रेनिंग का शेष समय बचा है उसे खत्म कर नियमित किया जाए। उसने नौकरी में 5 साल 16 अगस्त, 2005 को पूरे कर लिए थे। उसे विद्या उपासक नीति के अनुसार 3 जुलाई 2000 को नियुक्त किया गया था।
उच्च न्यायालय ने याचिका को स्वीकार कर आदेश दिए कि जिनके पांच साल पूरे हो गए हैं, उन्हें नियमित कर्मचारी के तौर में नियुक्त किया जाए। न्यायालय ने यह भी माना कि सरकार ने चयनित उम्मीदवारों को एक साल का कोर्स 5 साल में उचित करवाने को उचित कदम नहीं उठाएं हैं, इसलिए उम्मीदवारों की कोई गलती नहीं है।
इसी फैसले को हिमाचल सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी और सर्वोच्च न्यायालय ने इसे गलत ठहराते हुए कहा कि पॉलिसी के मुताबिक उम्मीदवारों को ऐसा कोई प्रबंध नहीं किया गया था कि जिसमें उम्मीदवारों को पांच साल की सेवा के बाद रेगुलर किया जाएगा।
पॉलिसी के मुताबिक नियमित किए जाने के लिए संतोषजनक परिणाम, प्रशिक्षण पूरा करना तथा ट्रेनिंग उत्तीर्ण करना तीन शर्ते थी। साथ में एक और अतिरिक्त शर्त थी कि 12वीं पास उम्मीदवारों को अपनी शैक्षणिक योग्यता को बढ़ाना होगा(दैनिक भास्कर,शिमला,20.11.2010)।
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