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08 नवंबर 2010

हरियाणाःडीपीसी बनी डबल पॉलिसी कमेटी

राज्य के कर्मचारियों की पदोन्नति प्रदान करने में अहम भूमिका निभाने वाली डिपार्टमेंटल प्रमोशन कमेटी (डीपीसी) तकनीकी शिक्षा विभाग के कर्मचारी एमएल पाहवा के लिए डबल पॉलिसी कमेटी बनकर रह गई है। कमेटी ने श्री पहवा को पदोन्नति न देने के लिए न सिर्फ अपने नियम बदले बल्कि उनकी सेवानिवृत्ति के बाद फिर से पुराने नियम लागू कर दिए।
यह खुलासा श्री पाहवा द्वारा सूचना का अधिकार कानून के तहत मांगी गई सूचना से हुआ है। दरअसल तकनीकी शिक्षा विभाग में पदोन्नति नियमों के अनुसार दसवीं पास एक फोरमैन इंस्टेक्टर को आईटीआई, सीटीआई और दस वर्ष के अनुभव के बाद वर्कशाप सुपरीटेंडेंट के पद पर पदोन्नति दे दी जाती है। आरटीआई से मिले रिकार्ड के अनुसार इस नियम के तहत 17 नवंबर, 1993 व 8 मई, 1997 को विभाग के एससी चावला, ज्ञानचंद, बलराम कृष्ण, बिशन दास, जगत राम, बलदेव आदि को पदोन्नति दी गई। इसी के तहत वर्ष 1996 में विभाग के फोरमैन इंस्ट्रेक्टर एमएल पाहवा को पदोन्नति मिलनी थी लेकिन बकौल श्री पाहवा विभाग के एक आला अधिकारी की रंजिश के कारण यह नहीं हो पाया। मामला काफी लटका लेकिन 1 जनवरी, 2000 को डीपीसी की बैठक में एमएल पाहवा सहित कंवलजीत, सतपाल व बीबी गुप्ता की पदोन्नति को हरी झंडी दे दी गई लेकिन आदेश जारी नहीं किए गए। इसके करीब सवा तीन वर्ष बाद सुनियोजित ढंग से 25 मार्च, 2003 को डीपीसी की बैठक में बीबी गुप्ता को छोड़कर पदोन्नति पाने वाले बाकी सभी के नाम सहित यह प्रस्ताव पारित किया गया कि पदोन्नति के लिए कोई भी योग्य कर्मचारी नहीं मिला और फाइल बंद कर दी गई। इसके तीन माह बाद 30 जून, 2003 को श्री पाहवा पदोन्नति का इंतजार करते-करते सेवानिवृत्त हो गए। बाद में 10 अगस्त, 2006 को डीपीसी ने बीबी गुप्ता, हरदयाल सिंह, वेद प्रकाश व एमएस सोलंकी को उन्हीं नियमों के आधार पर इसी पद पर पदोन्नति दे दी। इनमें एमएस सोलंकी के अलावा कोई भी दसवीं कक्षा से ज्यादा योग्यता वाले नहीं थे। हालात यह है कि मामला मुख्यमंत्री दरबार के अलावा हाईकोर्ट में भी हैं लेकिन अभी तक श्री पाहवा को न्याय नहीं मिला है।

कहीं महत्व न खो दे न्याय
हिसार: कहते हैं कि जब न्याय समय पर नहीं मिलता तो वह अपना महत्व खो देता है और एमएल पाहवा के मामले में भी कुछ ऐसा ही होने का अंदेशा है। दरअसल पदोन्नति न मिलने पर श्री पाहवा ने 22 अक्टूबर, 2000 को हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी थी, जिसका जवाबदावा पेश हो चुका है। इसके बाद आज तक इस याचिका पर सुनवाई नहीं हुई है जबकि श्री पहवा 65 वर्ष से ऊपर को हो चले हैं। श्री पहवा ने बताया कि उनके सिर्फ दो लड़कियां है जो अपने परिवार में व्यस्त है। उनकी मौत के बाद इस मामले की पैरवी करने वाला भी कोई नहीं बचेगा। उन्होंने मांग की है कि सीनियर सिटीजन के मामले की अदालत में जल्दी सुनवाई का प्रावधान करके उन्हें समय पर न्याय दिलाया जाए(दैनिक जागरण,हिसार,8.11.2010)।

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