पीएचडी रजिस्ट्रेशन से लेकर डिग्री अलॉट होने तक की प्रक्रिया में कई खामियां, तिकड़मी लोग मिलीभगत से उठाते हैं इन्हीं कमियों का लाभ। बरकतउल्ला विश्वविद्यालय (बीयू) के बहुचर्चित पीएचडी गड़बड़ी कांड में सिर्फ एक कमलाकर सिंह नहीं, बल्कि पर्दे के पीछे और भी कई कमलाकर छिपे बैठे हैं। दरअसल पीएचडी रजिस्ट्रेशन से लेकर डिग्री अलॉट होने तक की प्रक्रिया में ऐसी कई खामियां हैं, जिनका लाभ मिलीभगत से तिकड़मी लोग उठाते हैं।
यह खुलासा अधिवक्ता सुरेंद्र गुप्ता की ओर से सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में हुआ है। चौंकाने वाला तथ्य यह भी है कि विवि में लंबे समय से ऐसे प्रध्यापकों के मार्गदर्शन में पीएचडी कराई जा रही है, जिन्हें नियमों के तहत पात्रता ही नहीं है। नियमानुसार पीएचडी का गाइड प्रोफेसर खुद जिस विषय में पीएचडी कर चुका है, उसी विषय से संबंधित शोध कार्य कराने की पात्रता रखता है।
लेकिन विवि में इसका उल्लंघन हो रहा है। बात सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती है। पीएचडी करने के इच्छुक व्यक्ति के स्नातकोत्तर परीक्षा में कम से कम 55 फीसदी अंक होने चाहिए। यही नियम पीएचडी कराने वाले व्यक्ति पर भी लागू होता है। बावजूद इसके कुछ मामले ऐसे हैं, जिनमें पीएचडी कराने वाले प्रोफेसर गाइड के खुद स्नातकोत्तर परीक्षा में 55 फीसदी अंक नहीं हैं।
ऐसा ही एक और मामला
पीएचडी गाइड की पात्रता की जांच परखने वाली रिसर्च डिग्री गाइड कमेटी ने प्रो. कालिका यादव की पीएचडी कराने की योग्यता पर सवाल उठाया है। कमेटी ने कहा है कि प्रो. यादव जिस विषय के पीएचडी गाइड हों, उसी विषय में उसकी पीएचडी भी होनी चाहिए । प्रो. यादव अर्थशास्त्र विषय में एमए (52.9 प्रतिशत) और पीएचडी हैं, जबकि पीएचडी गाइड शिक्षा विषय के हैं। जब इस मामले में प्रो. यादव का पक्ष जानना चाहा तो उन्होंने बात करने से इंकार कर दिया।
ये भी कम हैरतअंगेज नहीं
शारीरिक शिक्षा विभाग में पदस्थ अखिलेश शर्मा का मामला कमलाकर सिंह के मामले को टक्कर देता है। प्रो. शर्मा ने दो बार पीएचडी की। बाद में जांच में खुलासा हुआ कि उन्होंने पहली पीएचडी की नकल दूसरी पीएचडी में की है। इसी आधार पर उनकी दूसरी पीएचडी को निरस्त कर दिया गया। अब प्रो.शर्मा फिर से पीएचडी की तैयारी कर रहे हैं। सूचना के अधिकार के तहत जानकारी लेने वाले अधिवक्ता श्री गुप्ता कहते हैं कि विवि में इसी तरह कई प्रोफेसर पीएचडी गाइड बने हुए हैं। ऐसे सभी मामलों की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए।
क्या हुआ
विवि के प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा विभाग की प्रो. नीरजा शर्मा मनोविज्ञान विषय में एमए एवं पीएचडी हैं। बीए में उनके 48 फीसदी और एम में 54.8 प्रतिशत हैं। प्रो. शर्मा पीएचडी भी शिक्षा विषय में करवा रही हैं।
क्या होना चाहिए?
प्रो. शर्मा के स्नातकोत्तर परीक्षा में 55 प्रतिशत अंक होने पर ही नियमों के तहत वह मनोविज्ञान विषय से संबंधित शोध कार्य ही करवा सकती हैं। जिस विषय में पीएचडी कराई जा रही है, उस विषय में पढ़ाने का 5 साल का अनुभव भी बेहद जरूरी है। इस मामले में प्रो. शर्मा का कहना है कि वे जिस विभाग में पदस्थ हैं, उस विभाग की पीएचडी गाइड बन सकती हैं। कुछ भी नियमविरुध्द नहीं है। एडवोकेट गुप्ता को जानकारियों का अभाव है(दैनिक भास्कर,भोपाल,5.11.2010)।
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