राष्ट्रमंडल खेलों के बाद इन दिनों एशियन खेलों की धूम है। प्रदेश सरकार व खेल विभाग नई खेल प्रतिभाओं की खोज कर उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाने के लिए योजनाएं चलाने के दावे कर रहे हैं। लेकिन, जमीनी सच्चाई तो यह है कि प्रदेश स्तर पर खेल प्रतिभाओं को दिया जाने वाला वजीफा अफसरशाही की भेंट चढ़ चुका है। जिसकी वजह से भिवानी व अंबाला सहित कई जिलों के खिलाड़ी भूखे पेट मेहनत करने को मजबूर हैं।
खेल विभाग ने प्रदेश सरकार की घोषणा को अमलीजामा पहनाते हुए वित्तीय वर्ष 2009-10 में प्रदेश स्तर पर स्पोर्ट एंड फिजिकल एप्टीट्यूड टेस्ट (एसपीएटी) लेना शुरू किया। इसमें विभिन्न जिलों के तीन हजार खिलाड़ियों को मैरिट सूची में जगह देते हुए इनके लिए वजीफा देने का ऐलान किया गया। इस वजीफे को खिलाड़ी अपनी डाइट के तौर पर खर्च कर हृष्ट-पुष्ट हो सकें, ऐसी विभाग की मंशा थी। इसके लिए खिलाड़ियों के बाकायदा उम्र के हिसाब से दो वर्ग बनाए गए। पहले वर्ग में 8-14 व दूसरे वर्ग में 15-19 आयु वाले खिलाड़ियों को रखा गया। इन्हें हर महीने क्रमश: 1500 और दो हजार रुपये दिए जाने निर्धारित किए गए। लेकिन, खिलाड़ियों के हक को लाल फीताशाही की नजर लग गई। अधिकारियों की खिलाड़ियों के प्रति बेरूखी व कामकाज के प्रति लापरवाही का परिणाम रहा कि अगस्त महीने से भिवानी व अंबाला सहित कई जिलों के खिलाड़ियों को यह राशि नसीब नहीं हुई है। बेचारे खिलाड़ी इतने लाचार हैं कि वे अधिकारियों द्वारा खिंचाई किए जाने के डर से अपनी बात को किसी के सामने रखने में भी हिचक रहे हैं। मुंह खोलने पर डर है कि कहीं अधिकारी उन्हें अपना निशाना बनाते हुए खेलों से बाहर ही न कर दें। इस मामले में खेल विभाग के अफसर भी मुंह खोलने से बच रहे हैं। कोई भी कोच विभागीय कार्रवाई के डर से खेल प्रतिभाओं का पक्ष आला अधिकारियों के समक्ष नहीं रख रहा है।
उधर, जिला खेल अधिकारी अरूणा सूद ने खिलाड़ियों को धनराशि न दिए जाने की बात को मानने व कोई भी प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया। लेकिन, देर शाम दोबारा पूछने पर उन्होंने बहाना बनाया कि जिले में कई खेल प्रतियोगिताएं पिछले दिनों हुई हैं, इनमें खेल विभाग व्यस्त था, इसलिए खिलाड़ियों को उनका हक नहीं मिल सका। वे कहती हैं कि तीन दिसंबर को खिलाड़ियों के बैंक खातों में राशि डलवा दी जाएगी। लेकिन, खुद डीएसओ इस बात को भी भूल रही हैं कि खेल प्रतियोगिताओं को करवाने में कोच व सहायक स्टाफ व्यस्त होता है। जिस अकाउंट्स स्टाफ को बजट तैयार करना होता है और फिर खिलाड़ियों के बैंक खातों में जमा करवाना होता है, उसका खेल प्रतियोगिताओं से कोई लेना-देना ही नहीं होता। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि खेल प्रतिभाएं इस समय सिर्फ भगवान भरोसे हैं(टी.के.श्रीवास्तव,दैनिक जागरण,अंबाला,21.11.2010)।
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