उत्तराखंड में बेहतर शिक्षा व्यवस्था के दावे भले ही किए जाते हों, हकीकत बिल्कुल उलट है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आधा सत्र बीतने के बाद भी यहां के अधिकांश पब्लिक स्कूलों और निजी विद्यालयों में पाठ्य-पुस्तकें तक उपलब्ध नहीं हो पाई हैं। विद्यालय संचालकों ने बिना पाठ्य-पुस्तकों के ही अर्द्धवार्षिक परीक्षाएं भी संपन्न करा दी हैं। प्रदेश में पब्लिक स्कूलों और निजी विद्यालयों को उत्तराखंड शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त करने के लिए जिन शतरें को पालन करना आवश्यक होता है उनमें एक शर्त यह भी है कि विद्यालयों को प्राइमरी स्तर पर एक चौथाई और जूनियर स्तर पर तीन चौथाई बोर्ड द्वारा निर्धारित पाठ्यक्त्रम लागू करना होगा। इस शर्त के अनुपालन के तहत स्कूलों को बोर्ड द्वारा निर्धारित राजकीय प्रकाशन की पाठ्य-पुस्तकों की व्यवस्था करनी होती है। इसके लिए उन्हें अपने यहां अध्ययनरत छात्रों की विषयवार संख्या सूची जिला परियोजना कार्यालय को निश्चित समय पर भेजनी होती है। इसके आधार पर ही परियोजना कार्यालय इन स्कूलों को किताबें आवंटित करता है, लेकिन जिले में इस वर्ष आधा सत्र बीतने के बाद भी अधिकांश पब्लिक स्कूलों को किताबें उपलब्ध नहीं हो पाई हैं। विवेकानंद विद्या मंदिर डीडीहाट के प्रधानाचार्य कृपाल जोशी, बाल विद्या मंदिर अस्कोट के दिनेश जोशी सहित अन्य पब्लिक स्कूलों के व्यवस्थापकों का कहना है कि विभाग के निर्देशानुसार संख्या सूची व मांग पत्र निर्धारित तिथि पर जमा करने के बावजूद अभी तक उन्हें किताबें उपलब्ध नहीं कराई गई हैं। वहीं, जिला परियोजना कार्यालय का कहना है कि शिक्षा सत्र के प्रारंभ में ही दो-दो बार विज्ञप्ति जारी की गई थी, परंतु निर्धारित समय तक बहुत कम विद्यालयों द्वारा संख्या सूची उपलब्ध कराई गई। इसी कारण केवल सूची उपलब्ध कराने वाले विद्यालयों को ही किताबें दी गईं(दैनिक जागरण,अस्कोट-पिथौरागढ़,21.11.2010)।
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