कोई व्यक्ति शादी के जरिए पिछड़ी जाति का दर्जा हासिल नहीं कर सकता है। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस आशय के विचार एक फैसले में जताए हैं। हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कोई महिला अगड़ी जाति की है तो किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति से शादी करने पर वह नए दर्जे का दावा नहीं कर सकती।
साथ ही वह आरक्षण का लाभ भी नहीं ले सकती।जस्टिस प्रदीप नंद्राजोग तथा सिद्धार्थ मृदुल की डिवीजन बेंच ने एक शिक्षिका के मामले का निपटारा करते हुए ये विचार जताए। इस शिक्षिका को जन्म से अनुसूचित जनजाति की नहीं होने के कारण केंद्रीय विद्यालय में 15 वर्ष तक नौकरी करने के बाद बर्खास्त कर दिया गया था।
कोर्ट ने कहा कि कोई उम्मीदवार अगड़ी जाति में जन्म लेकर सुविधाओं भरे जीवन की शुरुआत करता है और आगे भी सुविधापूर्ण जीवन बिताता है। लेकिन शादी करके या अन्य किसी प्रकार से पिछड़े वर्ग में शामिल होने पर वह आरक्षण का लाभ लेने का हकदार नहीं हो जाता।
अदालत ने इस मामले में शिक्षिका की नौकरी बहाल करने को कहा। बेंच ने कहा कि नियुक्ति से पहले ब्योरे की जांच नहीं करना संगठन की लापरवाही है(दैनिक भास्कर,दिल्ली,21.11.2010)।
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