भाग-दौड़ भरी जिंदगी में लोगो के पास खाने के लिए समय नही है। ऐसे में नाश्ते के बतौर पोहा भारतीय रसोई में लगातार अपनी भागीदारी बढ़ा रहा है। इसके चलते पोहे की मांग में इजाफा हो रहा है। उल्लेखनीय है कि देश में स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता से खान-पान में बदलाव आया है। इस कारण भुने हुए खाद्य पदार्थों का उपयोग बढ़ रहा है। देश के अलग-अलग भागों में चिवड़ा, पोहा, अवलकी, राईस फ्लैक विभिन्न नाम, गुणवत्ता व साइज का बाजार में बिकता है।
आजकल आलू व चावल के रोस्टिड पोहा का उपयोग अनेक व्यंजनों में किया जाने लगा है जिससे इसकी मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। उत्तर से दक्षिण व पूर्व से पश्चिम तक देश के सभी भागों में पोहा का उपभोग किया जाता है। उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्टर, गुजरात सहित दक्षिण भारत में प्रचुरता से पोहा का उत्पादन किया जाता है। अमेरिका, जापान, जर्मनी के साथ सऊदी अरब में भी काफी चाव से चिवड़ा खाया जाता है। पोहा की भण्डारण अवधि करीब चार माह तक रहती है इसलिये अधिक मात्रा में स्टोर करने पर खराब होने का भय नहीं रहता।
पहले तो देश में पोहे का निमार्ण पारंपरिक तरीके से किया जाता था लेकिन इसका उत्पादन आधुनिक तकनीक से किया जा रहा है। जिसके कारण एक मशीन में ही पोहा अलग-अलग साईजों में बनाया जा सकता है। चावल भूनने में धान की भूसी की भट्ïटी का प्रयोग न करके गैस की भट्ïटी या विद्युतचलित ओवन का प्रयोग किया जाने लगा है। आधुनिक व नई तकनीक की मशीनों से ज्वार, मक्का, जौ आदि के भी पोहा बनाये जाते हंै। भारत सरकार में लघु उद्योग सेवा संस्थान द्वारा किए गए एक सर्वे में यह तथ्य सामने आया कि आधुनिक तकनीक का प्रयोग करने से करीब 30 प्रतिशत अधिक उत्पादन लिया जा सकता है। केन्द्रीय खाद्य तकनीक शोद्य संस्थान, मैसूर ने पोहा उत्पादन की नयी तकनीक का आविष्कार किया है जिसके द्वारा उत्पादित उत्पाद पीएफए मानकों के अनुरूप होते हैं।
मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ राज्यों में कई प्लांट आधुनिक तकनीक पर आधारित हैं जिनके उत्पादन का एक बड़ा भाग विदेशों को निर्यात कि या जाता है। पोहा में अनेक पौष्टिïक तत्व व कार्बोहाइड्रेट्स पाये जाते हैं। दूध व शक्कर के मिश्रण से इसकी एनर्जी व पौष्टिïकता में वृद्धि हो जाती है। आजकल रोस्टेड व ड्राइड पोहा एनर्जीयुक्त व कई तरह के फ्लेवरों में मिलते हैं जिनमें मिनरल्स व अन्य पौष्टिक तत्व सुरक्षित रहते हैं, का प्रचलन बढ़ रहा है। धान्य का रोस्टेड पोहा मरीज के लिये भी उपयोगी बताया गया है।
जमीन - पोहा की मल्टी यूनिट स्थापित करने के लिये 250 से 300 वर्गमीटर भवन की आवश्यकता रहती है
निवेश - पोहा बनाने की इकाई लगाने में होता है तकरीबन 10 से 15 लाख रुपये तक का शुरुआती निवेश
फायदा - आधुनिक तकनीक वाली मशीनों के इस्तेमाल से लाभ में हो सकती है लगभग 30 फीसदी की बढ़त
(विशाल तिवाड़ी जोधप,दैनिक भास्कर,19.11.2010)
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