मुख्य समाचारः

सम्पर्कःeduployment@gmail.com

17 नवंबर 2010

डिज़ाइनिंग में करिअर

डिज़ाइनिंग और कला अब एक बेहद बड़ा सेक्टर बन चुका है। यहां मौके हैं, हुनर की कद्र है और अब तो पैसा भी भरपूर है। यही वजह है कि हर साल एनआईडी, एनआईएफडी और बीएचयू जैसे कला संस्थानों में लाखों की संख्या में छात्र प्रवेश परीक्षा में हिस्सा लेते हैं।

क्या आप रंगों से खेलते हैं? क्या आप आकारों की एक दुनिया सजाते हैं? क्या आप कुछ नया करने का जज्बा रखते हैं? तो फिर खुद से आप एक वादा क्यों नहीं करते? वादा अपना बेस्ट देने का, क्योंकि आकारों की जो रंगीन दुनिया आप से शोहरत और दौलत का वादा करती है, वो आप से भी एक वादा चाहती है कि आप इस दुनिया को अपना बेस्ट देंगे। डिज़ाइनिंग की दुनिया की यह वह अघोषित शर्त है, जिसे जिसने भी महसूस किया, वह छा गया। बात डिज़ाइनिंग की उस दुनिया की हो रही है, जिसमें आपकी संवेदनशीलता आपकी सबसे बड़ी पूंजी है। आपकी मौलिक सोच आपके लिए रास्ता बनाती है और आप कहलाते हैं कलाकार।

यहां जिसके पास है मौलिक आइडिया, वही है मालामाल। अब वे दिन लद गए, जब कलाकार का मतलब होता था बढ़ी हुई दाढ़ी, एक झोला और चेहरे पर बीते वक्त के निशान। फैशन की दुनिया से लेकर फर्नीचर की दुनिया तक आपके लिए आज की तारीख में इतने दरवाजे खुलते हैं कि आप कह सकते हैं ये करियर हैं कुछ अलग किस्म के। शायद आप अपनी पिछली पीढ़ी से खुशनसीब भी हैं, क्योंकि उनके पास इतने ज्यादा विकल्प नहीं थे। लैंडस्केप डिज़ाइनिंग, लेदर डिज़ाइनिंग, फर्नीचर डिज़ाइनिंग, एनिमेशन एंड गेम आर्ट से लेकर फैशन इंडस्ट्री के चप्पे-चप्पे में आपके पास अपनी कल्पनाशीलता और मौलिकता दिखाने का मौका है।

आकार बनाते हैं रास्ते
एक अच्छा डिज़ाइनर बनने की पहली शर्त है कि आप अपने आकारों को भाव दे सकें। जो अच्छा स्केच करना जानते हैं, जिनका रंगबोध अच्छा है, उनके लिए एक डिज़ाइनर के रूप में सफल होना आसान है। लेकिन चाहे आप किसी भी फील्ड में डिज़ाइनिंग का काम करना चाहते हैं, आपके लिए ये जरूरी है कि आप फाइन आर्ट को जरूर समझों। अपवाद हो सकते हैं, लेकिन सफल होने के लिए आपको ड्राइंग की बारीकियां सीखनी ही होंगी। रंगों का स्वभाव पहचानना ही होगा। आकार गढ़ने ही होंगे। ब्रश और कैनवस का जादूगर आपको बनना ही होगा।

ड्राइंग को सीखने के लिए जमीनी स्तर से शुरुआत करनी होगी अर्थात स्केचिंग के माध्यम से सजीव चित्र बनाने की प्रक्रिया। फिर पेंसिल, चारकोल पोस्टर कलर, वॉटर कलर, तैल रंग व अन्य नवीन माध्यमों की सहायता से सीखने की अनवरत प्रक्रिया चलती रहती है। डिज़ाइनिंग में करियर बनाने के लिए आप ललित कला (फाइन आर्ट्स) में बैचलर डिग्री कोर्स यानी बीएफए कर सकते हैं। इसमें प्रवेश की बुनियादी योग्यता बारहवीं है। चार वर्षीय बीएफए पाठय़क्रम में डिज़ाइन, ड्राइंग, पेंटिंग और स्केचिंग की गहन शिक्षा दी जाती है।

यदि आप बीएफए न करना चाहें तो एक वर्षीय फाइन आर्ट्स डिप्लोमा कोर्स भी कर सकते हैं और इसके बाद आप डिज़ाइनिंग का फील्ड चुन सकते हैं। हालांकि डिज़ाइनिंग के कई तरह के कोर्स में फाइन आर्ट की समझ विकसित करने की कोशिश भी होती है। यहां ये बात भी ध्यान रखने की है कि कोर्स की पढ़ाई रोजगार तो दिला सकती है, लेकिन शोहरत और दौलत का खेल उनके लिए है, जो जोखिम उठाना जानते हैं और कुछ नया करना चाहते हैं। नया करने की चाह रखने वालों के लिए विज्ञापन एजेंसियों, पब्लिशिंग हाउस, मल्टीमीडिया, वेबपेज डिज़ाइनिंग, एनिमेशन व गेमिंग की दुनिया से अलग कई और नई दुनिया भी बस गई हैं।

यहां सब कुछ नया चाहिए
एक डिज़ाइनर कलात्मकता और तकनीकी जानकारी को संतुलन में उपयोग करते हुए कला को व्यापारिक उद्देश्यों के लिए उपयोग करने में प्रवीण होता है। उसे सिखाया जाता है कि किस तरह अपनी रचना में वह तकनीकी और व्यवसायिकता को ध्यान में रखते हुए एक बेहतरीन कलात्मक रचना का निर्माण करें। इस फील्ड में इलस्ट्रेशन, लेटिरंग, डिज़ाइनिंग तथा कंपनियों के लोगो बनाने में महारत दिलाई जाती है।

कर्मशियल आर्ट का ही विस्तार है एनिमेशन। यदि आप क्रिएटिव माइंड के हैं और कंप्यूटर तकनीक के साथ तालमेल बिठा कर अपनी रचनात्मकता को सामने ला सकते हैं तो फिर एनिमेशन व गेमिंग का क्षेत्र आपके लिए सबसे बेहतर करियर ऑप्शन हो सकता है। एनिमेशन और गेमिंग पूरे विश्व में बड़ी तेजी से उभरता हुआ क्षेत्र है, क्योंकि फिल्मों, कार्टून फिल्मों, विज्ञापनों, टीवी चैनल्स आदि में इनका अधिक से अधिक इस्तेमाल होने लगा है। एनिमेशन व स्पेशल इफेक्ट्स का इस्तेमाल आज फिल्मों व विज्ञापनों आदि में खूब हो रहा है। एनिमेशन के लिए सबसे पहले उसकी स्क्रिप्ट तैयार की जाती है।

स्क्रिप्ट में लिखित रूप से यह तय कर लिया जाता है कि उसमें कौन से पात्र डाले जाएंगे तथा क्या दृश्य तैयार किए जाएंगे। इसके बाद स्टोरी बोर्ड तैयार किया जाता है, जिसमें सभी संभावित दृश्यों के फ्रेम तैयार किए जाते हैं। इसके बाद एडोब फोटोशॉप जैसे सॉफ्टवेयर की मदद से चित्र तैयार किया जाता है। इन सभी चित्रों पर माया या एक्सएसआई जैसे एनिमेशन सॉफ्टवेयर की मदद से गति उत्पन्न की जाती है। इसके बाद गेमिंग इंजन जैसे सॉफ्टवेयर प्रोग्राम्स की मदद से इमेज की गति को की-बोर्ड और माउस द्वारा नियंत्रित किया जाता है। यहां कंप्यूटर की दक्षता और कलात्मक क्षमता का अनोखा रिश्ता देखने को मिलता है।

डिज़ाइनिंग की एक नई दुनिया है फर्नीचर डिज़ाइनिंग। एक फर्नीचर डिज़ाइनर के लिए नई खोज का मतलब है किसी के घर या ऑफिस को उसकी ज़रूरत के हिसाब से सजाना। अहमदाबाद के नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ डिज़ाइनिंग में फर्नीचर डिज़ाइनिंग में प्रवेश लेने वाले छात्रों की संख्या हाल के दिनों में तेजी से बढ़ी है। लेदर इंडस्ट्री में भी डिज़ाइनर की मांग बढ़ती जा रही है। यहां कोई सीमा नहीं है, क्योंकि कला की दुनिया में कामयाबी आपकी स्किल्स पर निर्भर करती है। लेदर डिज़ाइनिंग में भी वही कामयाब होता है, जो अच्छा चित्र बनाना जानता है और जिसे रेखाओं पर पकड़ है।

कुछ लोग टेक्सटाइल की दुनिया में भी डिज़ाइनिंग के जलवे बिखेर रहे हैं। इसमें कपड़े पर अपनी कला को प्रस्तुत करने का जौहर दिखाना होता है। जैसे पहले पेपर पर ड्राइंग तैयार करना, फिर पारंपरिक बुनाई के तरीके से उसको कपड़े पर उतारना, कपड़ों को रंगना आदि कार्य इस कला के अंतर्गत आते हैं। बुटीक की दुनिया में भी डिज़ाइनर को अपना हुनर दिखाने का मौका मिलता है।

बहरहाल डिज़ाइनिंग की कोई भी दुनिया क्यों न हो, यहां सफलता की कुंजी आपके हाथ तभी लगती है, जब आप जुनून की हद तक कला की दुनिया को आत्मसात करते हैं और अपनी मौलिक सोच को आकार देने में कभी नहीं हिचकते। विश्वविद्यालय की डिग्री या डिप्लोमा आपको रोजगार तो देते हैं, कलाकार भी आप बन जाते हैं, लेकिन कामयाबी की रंगीन कहानी के नायक आप तब तक नहीं होंगे, जब तक कि जोखिम लेने से डरना नहीं छोड़ देते। आज की तारीख में डिज़ाइनिंग वही है, जो किसी को भी दीवाना बना दे।

यहां से सीखें कला की बारीकी
-नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ डिजाइन, अहमदाबाद
-नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ फैशन डिज़ाइनिंग
(सभी शाखाएं)
-जे जे स्कूल ऑफ आर्ट्स (मुंबई)
-बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बनारस)
-ललित कला महाविद्यालय (नई दिल्ली)
-एमएस यूनिवर्सिटी (बड़ौदा)
-जामिया मिल्लिया इस्लामिया (नई दिल्ली)
-एमआईटी इंस्टीटय़ूट ऑफ डिजाइन, पुणे
-सृष्टि इंस्टीटय़ूट (बेंगलुरू)
-पर्ल इंस्टीटय़ूट (नई दिल्ली)
(प्रीतिमा वत्स,हिंदुस्तान,दिल्ली,16.11.2010)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।