आईआईटी कानपुर में पिछले पांच सालों में आठ छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या की है और हर आत्महत्या के बाद एक जांच कमेटी का गठन कर दिया गया, लेकिन जांच कमेटियों की रिपोर्ट और उनके आधार पर कार्रवाई के बारे में कोई जानकारी इतने सालों में नहीं मिली।
देश में पढ़ाई और शोध में अपना झंडा बुलंद करने वाला आईआईटी कानपुर छात्र-छात्राओं के आत्महत्या करने के मामले में भी सबसे उपर पहुंच गया है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस संस्थान के निदेशक और अन्य अधिकारी ऐसी आत्महत्याओं के बाद जांच कमेटी गठित कर निश्चित हो जाते हैं।
गौरतलब है कि बुधवार शाम माधुरी साले नाम की बीटेक सिविल इंजीनियरिग अंतिम वर्ष की छात्रा ने अपने हॉस्टल के कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। संस्थान के रजिस्ट्रार संजीव कशालकर से जब इस बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि इन रिपोर्ट को आईआईटी बोर्ड में रखा जाता है उसके बाद यह परामर्शदाता कमेटी में जाती है। उसकी एक प्रति मानव संसाधन मंत्रालय को भेजी जाती है, लेकिन मीडिया को उपलब्ध नहीं करायी जाती।
इन जांच कमेटियों में तीन शिक्षकों के अलावा छात्रों का एक प्रतिनिधि भी शामिल होता है। आईआईटी की छात्र यूनियन जिमखाना से जुड़े एक छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जांच कमेटियां केवल दिखावा होती हैं। इनमें जिमखाना का एक छात्र शमिल जरूर किया जाता है लेकिन उसे न तो किसी बैठक में बुलाया जाता है और न ही आत्महत्या का कारण बताया जाता है। कई मामलों में तो छात्रों को रिपोर्ट दिखाई तक नहीं जाती(हिंदुस्तान,कानपुर,18.11.2010)।
बहुत ही दयनीय स्थिती है। कब सुधरेगा भारत।
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