शैक्षणिक संस्थाओं में रैगिंग पर नकेल कसने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के करीब डेढ़ साल बाद भी सरकार रैगिंग वेब पोर्टल शुरू नहीं कर पाई है। मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने हालांकि तकनीकी कठिनाइयां दूर कर पोर्टल के जल्द शुरू होने की उम्मीद जताई है। सिब्बल ने यहां कहा, इस मामले में कुछ तकनीकी पहलू सामने आए हैं। जिन पर साफ्टवेयर सेवा प्रदान करने वाली कंपनी एचसीएल से बात हुई है। पोर्टल जल्द ही शुरू हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने 8 मई 2009 को रैगिंग मामलों की सुनवाई करते हुए सरकार को कई निर्देश दिए थे। इनमें एक वेब पार्टल शुरू करने की भी बात थी। इसका मकसद देश के सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में रैगिंग से संबंधित मामलों पर कार्रवाई समेत पूर्ण ब्योरा देने के अलावा रैगिंग डाटा बैंक तैयार करना है। हिमाचल प्रदेश के टांडा में रैगिंग के कारण जान गंवाने वाले मेडिकल छात्र अमन काचरू के पिता राजेंद्र काचरू ने वेब पोर्टल को लेकर केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को भी पत्र लिखा है। उनका आरोप है कि इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ने से रोका जा रहा है। उनका कहना है कि यूजीसी ने बिना आधिकारिक निविदा जारी किए वेबसाइट तैयार करने की जिम्मेदारी एक सरकारी एजेंसी ईडीसीआइएल को सौंप दी जबकि अदालत ने यह काम गैर सरकारी एजेंसी से कराने को कहा था। इस बारे में पूछने पर सिब्बल ने कहा, यह आसाम काम नहीं है। देश भर के करीब 26 हजार कॉलेज और 500 विश्वविद्यालयों को एक पोर्टल पर लाना है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुरूप इस काम को आगे बढ़ाया जा रहा है। सिब्बल ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त राघवन समिति यह विषय देख रही है। उल्लेखनीय है कि राघवन समिति ने रैगिंग निरोधक नियमन पर अमल करने में अरुचि दिखाने और इन मिशन को नजरअंदाज करने पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) व मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) की खिंचाई की थी। फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया, डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआइसीटीई) भी समिति की आलोचनाओं के घेरे में आई थीं। समिति के अनुसार, एंटी रैगिंग हेल्पलाइन तो 20 जून 2009 को अमल में आ गई थी लेकिन इस पर प्रभावी अमल नहीं हुआ(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,15.11.2010)।
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