अखिल भारतीय सिविल सेवा के पैटर्न पर एक राष्ट्रीय स्तर की न्यायिक सेवा शुरू करने की केंद्र की योजना राज्यों के बीच सहमति नहीं होने से गतिरोधों का सामना कर रही है। यह योजना कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय से संबंधित संसदीय स्थायी समिति की सिफारिशों पर आधारित है। सूत्रों ने कहा कि 21 उच्च न्यायालयों में से कम से कम 13 ने एक अखिल भारतीय न्यायिक सेवा होने पर आपत्ति जताई है। इसके पीछे भाषायी अवरोधों और कुछ राज्यों के छात्रों को अन्य राज्यों के विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम से होने वाली असुविधा को कारण बताया गया है। कानून मंत्री ने छह राज्यों और उच्च न्यायालयों की एक क्षेत्रीय बैठक के बाद कहा था कि अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का विचार बातचीत के दौरान आया, लेकिन अनेक राज्यों के बीच आम सहमति नहीं थी और उनके उच्च न्यायालयों के अपने अपने विचार थे। चर्चा जारी रहेगी। 1990 के दशक की शुरुआत में दिए गए कम से कम दो फैसलों में उच्चतम न्यायालय ने एक अखिल भारतीय न्यायिक सेवा शुरू करने की सिफारिश की थी। कानून मंत्रालय के न्याय विभाग ने इस मुद्दे पर अब एक विचार पत्र तैयार किया है और आगामी दिनों में इसे भागीदार पक्षों में बांटा जा सकता है(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,15.11.2010)।
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