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08 नवंबर 2010

यौन उत्पीड़न निवारण विधेयकःमहिलाओं में आत्मविश्वास पैदा करना भी ज़रूरी

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महिला यौन उत्पीड़न रक्षा विधेयक- 2010 को मंजूरी देकर कामकाजी महिलाओं को काफी राहत दी है। इस बिल का मकसद वर्किंग प्लेस पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकना है। इसमें संगठित, असंगठित और प्राइवेट तथा पब्लिक सेक्टर भी शामिल किए गए हैं। यह विधेयक सिर्फ किसी दफ्तर में नौकरी करने वाली महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने की बात नहीं करता, बल्कि इसके दायरे में उस ऑफिस में किसी काम से आने वाली दूसरी महिलाएं भी शामिल हैं। 

इस बिल की अरसे से प्रतीक्षा थी। यूपीए सरकार ने महिलाओं के पक्ष में कई अहम फैसले किए हैं। इस बिल को उसी सिलसिले की एक कड़ी रूप में देखा जा सकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह शीघ्र ही कानून का रूप ले लेगा। सामाजिक-आर्थिक विकास की प्रक्रिया ने महिलाओं को आगे आने के काफी अवसर उपलब्ध कराए हैं। अब बड़ी संख्या में महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में नौकरी कर रही हैं। लेकिन समाज का पुरुषवादी ढांचा अब भी बुनियादी रूप से नहीं बदला है। शायद यही वजह है कि स्त्रियों को कार्यस्थल पर पुरुषों का असहज व्यवहार झेलना पड़ता है। लेकिन यह केवल भारत की समस्या नहीं है। तमाम बड़े सामाजिक बदलावों के बावजूद विकसित देशों में भी यह समस्या बनी हुई है।

इंटरनैशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन द्वारा कुछ समय पहले 23 देशों में कराई गई एक स्टडी के मुताबिक 15 फीसदी से भी ज्यादा कामकाजी महिलाओं को यौन संबंधों की मांग से लेकर छींटाकशी तक, किसी न किसी तरह का यौन उत्पीड़न झेलना पड़ा। सर्वे में शामिल हर 12 में से एक महिला को इन मामलों के चलते नौकरी छोड़नी पड़ी थी या फिर उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था। आज कई विकसित देशों ने इस मामले में काफी कड़े कानून बनाए हैं, लेकिन हमारे देश में अब तक ऐसा नहीं हो पाया था। कानून बन जाने से उन लोगों में थोड़ा भय पैदा होगा, जो महिला सहकर्मियों या अधीनस्थों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं।

लेकिन भारत में एक समस्या यह है कि आमतौर पर महिलाएं शिकायत लेकर सामने नहीं आतीं। उन्हें लगता है कि इससे कहीं उनकी मुश्किलें और ज्यादा न बढ़ जाएं। लोगों को उनकी शिकायतों पर अविश्वास करने की आदत सी है। प्राय: आरोप लगाने वाली महिला के ही चाल-चलन पर सवाल उठा दिए जाते हैं। महिलाएं अपने परिवार की बदनामी के डर से इस झमेले में नहीं पड़ना चाहतीं। उन्हें लगता है कि किसी तरह का विवाद होने पर उनका परिवार परेशान होगा और उनकी नौकरी भी छुड़वा सकता है। इसलिए यौन उत्पीड़न पर कानून बनाने के साथ-साथ यह भी जरूरी है कि महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा किया जाए। इसके लिए ऐसे प्रयास करने होंगे जिससे स्त्री-पुरुष की बराबरी का भाव मजबूत हो(संपादकीय,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,8.11.2010)।

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