पढ़ाई-लिखाई के मामले में वाहवाही लूटने के सरकार के अपने तर्क हो सकते हैं, लेकिन उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी की नजर में स्थितियां अब भी बहुत बदली नहीं हैं। उन्होंने स्कूली शिक्षा में अब तक के नतीजों को नाकाफी माना है। मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल की मौजूदगी में बदतर स्थितियों का हवाला देते हुए उन्होंने सरकार को आईना भी दिखाया है। मौलाना अबुल कलाम आजाद के जन्मदिन के मौके पर राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के कार्यक्रम में अंसारी ने कहा, प्रारंभिक शिक्षा में पढ़ाई की विषय वस्तु, उसकी गुणवत्ता और उसके नतीजे अब भी अहम मसले हैं। बड़ा सवाल यह है कि स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक कैसे हैं? क्या वे प्रशिक्षित हैं? क्या और कैसे पढ़ाया जा रहा है? शिक्षकों व छात्रों का अनुपात क्या है? छात्रों को जिस उम्र में जो पढ़ाया जा रहा है, उससे उन्हें हासिल क्या हो रहा है? उन्होंने कहा कि यह सही है कि बच्चों को शिक्षा मुहैया कराने के मामले में सफलता मिली है, लेकिन प्रारंभिक शिक्षा में 43 प्रतिशत के ड्रॉप आउट (बीच में पढ़ाई छोड़ने) को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति और जनजाति के बच्चों में पढ़ाई छोड़ने की स्थिति और बदतर है। अनुसूचित जाति के 52 प्रतिशत से अधिक और अनुसूचित जनजाति के 63 प्रतिशत से अधिक बच्चे बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में तो स्थिति यह है कि अनुसूचित जाति के 50 प्रतिशत से अधिक बच्चे प्राइमरी के ऊपर नहीं पढ़ पाते। वैसे तो 6-14 साल की आयु के 25 प्रतिशत बच्चे स्कूल से गैर-हाजिर रहते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश व बिहार में यह 40 प्रतिशत तक देखा गया है। इस मौके पर सिब्बल ने कहा कि यद्यपि हमारी शिक्षा व्यवस्था ने हमें एक से बढ़कर एक वैज्ञानिक, शिक्षाविद, डॉक्टर, इंजीनियर, अर्थशास्त्री व दार्शनिक दिए हैं लेकिन इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता। पढ़ाने के तौर-तरीकों को बदलना होगा। शिक्षा महज परीक्षा पर केंद्रित होने के बजाय, बच्चों पर केंद्रित होनी चाहिए। इससे पहले सिब्बल ने फिक्की उच्च शिक्षा शिखर सम्मेलन-2010 की शुरुआत करते हुए कहा कि 2020 तक 30 प्रतिशत सकल दाखिला अनुपात की चुनौती बड़ी है। उसे हासिल करने के लिए 800 विश्वविद्यालयों व 45 हजार कॉलेजों की जरूरत है और उसके लिए बड़े पैमाने पर निवेश करना होगा। लिहाजा इस निवेश की राह आसान करने के लिए नई ढांचागत नीति बनायी जानी चाहिए क्योंकि कोई भी सरकार एक बार में इतने शैक्षणिक संस्थान स्थापित नहीं कर सकती(दैनिक जागरण,दिल्ली,12.11.2010)।
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