एम्स में एक बार फिर से विवाद का साया मंडराने लगा है। इस बार विवाद की वजह 364 सहायक प्रोफेसरों की गैर-कानूनी ढंग से पदोन्नति को लेकर है।
दिलचस्प बात यह है कि विरोध का झंडा इस बार कांग्रेस की सांसद और इंस्टिट्यूट बॉडी की सदस्य डॉ. ज्योति मिर्धा ने उठाया है। उन्होंने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और एम्स इंस्टिट्यूट बॉडी के अध्यक्ष गुलाम नबी आजाद को पत्र लिखकर विरोध भी जताया है।
डॉ. मिर्धा ने अपने पत्र में लिखा है कि एम्स प्रशासन 1995-2000 के बीच तमाम कानूनी प्रक्रियाओं को ताक पर रखकर 164 सहायक प्रोफेसरों को अस्थाई तौर पर नियुक्त किया जिसमें प्रशासन ने आरक्षण नियमों का खुला उल्लंघन किया है।
उन्होंने आगे लिखा है कि वर्ष 2001 में अस्थाई तौर पर नियुक्त सहायक प्रोफेसरों ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर स्थाई करने का अनुरोध किया था। लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी थी।
बावजूद इसके एम्स प्रशासन ने कोर्ट को ठेंगा दिखाते हुए वर्ष 2003 में सभी सहायक प्रोफेसरों को स्थाई तौर पर नियुक्ति दे दी। जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दायर किया गया।
जिसपर अभी तक कोई फैसला नहीं आया है। बावजूद इसके एम्स प्रशासन अस्थाई तौर पर नियुक्त सहायक प्रोफेसरों को पदोन्नति देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इससे साफ स्पष्ट होता है कि एम्स में इन नियुक्ति को लेकर गड़बड़झाला है(दैनिक भास्कर,दिल्ली,21.11.2010)।
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