मुख्य समाचारः

सम्पर्कःeduployment@gmail.com

21 नवंबर 2010

क़िताबों की दुनिया में युवाओं की भागीदारी

भारत की गिनती आज दुनिया के सबसे युवा देश के रूप में की जाती है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है, क्योंकि भारत की कुल जनसंख्या का 38 फीसदी हिस्सा 13 से 35 साल की आयु वर्ग में आता है। जाहिर है कि जब भारत में युवाओं का प्रतिशत दुनिया में सबसे ज्यादा है तो देश की कुल जनसंख्या भी इनकी संख्या सर्वाधिक होगी। इसी महीने शिक्षा दिवस यानी 11 नवंबर के अवसर पर नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया यानी एनबीटी ने युवाओं में रीडरशिप के विकास के लिए एक राष्ट्रीय योजना के तहत सर्वेक्षण कराया और इसकी जिम्मेदारी देश के सर्वाधिक विश्र्वसनीय संस्थाओं में से एक नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइड इकॉनोमिक रिसर्च (एनसीएइआर) को दी गई। भारत के इन दोनों प्रतिष्ठित संस्थानों ने मिल कर भारत में पहला ऐसा सर्वेक्षण प्रकाशित किया है जिसमें युवकों के बारे में काफी महत्वपूर्ण जानकारियां इकट्ठा की गई हैं। अगर इनको आधार बनाकर योजनाएं तैयार की जाएं तो इसमें कोई हैरत की बात नहीं होगी कि भारत के विकास की दर और तेज हो जाए। इसकी खास बात ये है कि यह न सिर्फ भारत में पहला ऐसा सर्वेक्षण है, बल्कि सारे विकासशील देशों में भी यह पहली ऐसी कोशिश है जिसके जरिये ये जानने का प्रयास किया गया है कि आखिर इस जवान देश के जवान किस ओर जा रहे हैं। 

भारत के युवकों में पढ़ने की आदत डालने और पढ़ने का माहौल और प्रवृत्ति पैदा करने के उद्देश्य को लेकर नेशनल बुक ट्रस्ट के नाम से भारत सरकार ने 1957 में एक आंदोलन छेड़ा था जिसकी परिकल्पना सिर्फ एक पब्लिशिंग हाउस के तौर पर नहीं की गई थी, बल्कि राष्ट्रीय एकता की एक मुहिम के तौर पर इसे देखा जाता रहा है। नेशनल बुक ट्रस्ट की शुरुआत जवाहरलाल नेहरू के उस ख्वाब का पूरा होना है जिसके द्वारा भारत जनतांत्रिक, आत्मनिर्भर और आगे की ओर देखने वाले समाज में केवल तभी परिवर्तित हो सकता है जबकि पूरे देश में बौद्धिक प्रेरणा का माहौल पैदा हो। हालांकि यह रिपोर्ट फरवरी में ही तैयार हो चुकी थी, लेकिन इसे नवंबर में भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के जन्म दिवस पर जारी किया गया। 

इस रिपोर्ट के लेखक और एनसीएइआर के वरिष्ठ अधिकारी राजेश शुक्ल का कहना है कि यह भारत की संपन्न संभावनाओं पर केंद्रित पहला व्यापक सर्वेक्षण है। इससे आने वाले दिनों में देश की प्रगति के लिए युवा वर्ग की बौद्धिक क्षमता का सही सदुपयोग करने की दिशा में सकारात्मक कदम उठाने में उपयोगी मदद मिल सकती है। एनबीटी के अध्यक्ष और मशहूर इतिहासकार प्रोफेसर बिपिन चंद्र का इस बारे में कहना है कि 1957 में जवाहरलाल नेहरू के जरिये स्थापित यह संस्थान सबसे ज्यादा विजनरी रहा है। इसी के तहत इस संस्था ने काम भी किया है। इस दिशा में चाहे वह पाठक सोसायटी की स्थापना करने का काम रहा हो अथवा देश के आम लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए लोकप्रिय विषयों पर सस्ते दामों में उन्हें किताब उपलब्ध कराना रहा हो। उनका यह भी कहना है कि अब जबकि भारत दुनिया का सबसे जवान देश है तो यहां युवाओं की रुचियों और उनकी क्षमताओं के बारे में जानना बहुत आवश्यक था। यही वह प्रमुख कारण था जिसके लिए एनबीटी ने इस बड़े और महत्वपूर्ण काम का बीड़ा उठाया। 

इस बारे में एनसीएइआर के डायरेक्टर जनरल सुमन बेरी का कहना है कि यह सर्वेक्षण अभी तक के विषयों से काफी अलग है। एक ओर जहां इनमें पहली बार व्यापक स्तर पर युवाओं के पढ़ने की आदत और रुचि को जानने का प्रयास किया गया है, वहीं यह भी जानने की कोशिश की गई है कि किस प्रकार लोगों में आजीवन पढ़ने की आदत और रुचि का विकास होता है। सर्वेक्षण से यह समझने में भी मदद मिल सकती है कि बच्चों के जीवन में उनके माता-पिता और शिक्षकों की किताबों को पढ़ने में उनकी रुचि जगाने में किस तरह की भूमिका हो सकती है। इस तरह सर्वेक्षण में इन तमाम पहलुओं को शामिल किया गया है। 

सर्वेक्षण में आज के बदल रहे माहौल और मीडिया की बढ़ती भूमिका व प्रभाव के अलावा खाली समय में युवाओं को क्या पढ़ना पसंद है आदि बातों को भी जानने का प्रयास किया गया है। सरकार की विभिन्न योजनाओं की जानकारी के अलावा महिला आरक्षण जैसे मुद्दों पर उनकी राय और विज्ञान तथा धर्म में उनकी रुचि पर भी जानकारी हासिल करने की कोशिश की गई है। इस प्रोजेक्ट को पूरा करने की जिम्मेदारी उठाने वाले कुमार विक्रम बताते हैं कि यह सर्वेक्षण एक बेसलाइन व गाइड लाइन तैयार करता है जिसके आधार पर हम आगे किए जाने वाले सर्वेक्षणों में यह जान पाएंगे कि क्या वास्तव में लोगों और ख़ास तौर से युवाओं की पढ़ने में रुचि कम हुई है अथवा यह लगातार बढ़ रही है। यदि ऐसा है तो वह किस तरह की पुस्तकों को पढ़ना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। यहां हम यदि इस सर्वेक्षण की विवेचना करें तो कई रोचक तथ्य और बातें देखने को मिलती हैं। यह आम धारणा है कि लोगों की रुचि किताबें पढ़ने में कम हो रही है और लोगों ने किताबें पढ़ना छोड़ दिया है। और यह कि अब किताबें नहीं बिकती और युवा टीवी, मोबाइल की ओर ज्यादा आकर्षित हैं। इस तरह वे पढ़ने से दूर होते जा रहे हैं। इस बारे में तथ्य यह है कि कि भारत में शिक्षा बढ़ी है। आज साक्षारता एक तिहाई से बढ़कर दो तिहाई हो चुकी है। दुनिया में सबसे ज्यादा किताबें यहीं प्रकाशित हो रही हैं। आखिर क्या है इस विरोधाभास का कारण? 

रिपोर्ट के मुताबिक 2009 में भारत में 13 से 35 आयु वर्ग के युवाओं की संख्या 45 करोड़ 90 लाख यानी की देश की कुल आबादी का 38 फीसदी है। इसमें 25-35 आयु वर्ष के लोगों का प्रतिशत 41 है। कुल 33 करोड़ 30 लाख लोग ऐसे हैं जो पढ़ सकते हैं। इसमें महिलाओं का प्रतिशत 44 है। इसमें भी 82 प्रतिशत हिंदू, 13 प्रतिशत मुस्लिम और दो प्रतिशत सिख हैं। जितने लोग पढ़ सकते हैं उनमें से सिर्फ 10 प्रतिशत युवक स्नातक हैं। साक्षर युवकों में से 33 प्रतिशत वेतन और कामगार वाले घरों से आते है जबकि 31 प्रतिशत किसान घरों से हैं। साक्षर युवकों में अन्य पिछड़ी जाति का प्रतिशत 40 है, जबकि दलितों का प्रतिशत 33 है। रिपोर्ट के मुताबिक़ लगभग 62 प्रतिशत युवा वर्ग गांवों में हैं। भारत में कुल पाठकों की संख्या आठ करोड़ 30 लाख है जो कुल युवा आबादी का 25 प्रतिशत है। 24 प्रतिशत पुरुष और 27 प्रतिशत महिलाएं पढ़ने में दिलचस्पी रखती हैं। 58 प्रतिशत पाठक मैट्रिक या उससे कम पढ़े हैं जबकि 42 प्रतिशत उससे ज्यादा पढ़े हैं। खाली समय में 43 प्रतिशत इसाई और 25 प्रतिशत हिंदू युवक किताबें पढ़ते हैं। बड़े परिवार या हॉस्टल में रहने वाले युवक छोटे परिवार के युवकों के मुकाबले ज्यादा पढ़ते हैं। युवाओं में 77 फीसदी ऐसे हैं जिनकी दिलचस्पी फिल्म और संगीत में है। 72 फीसदी को खबरों और समसामयिक घटनाओं में भी रुचि है, जबकि 59 प्रतिशत को धार्मिक और आध्यात्मिक विषयों में रुचि है। 35 प्रतिशत युवकों को विज्ञान और टेक्नोलॉजी में दिलचस्पी है तो 34 प्रतिशत पर्यावरण संबंधी प्रदूषण से चिंतित हैं। खाली वक्त में उन्हें टीवी देखना और अख़बार पढ़ना सबसे ज्यादा पसंद है। 

सर्वेक्षण में पाया गया है कि साक्षर युवक आम तौर पर हर दिन टीवी देखने में औसतन 98 मिनट बिताते हैं, जबकि संगीत सुनने में 61 मिनट। इसमें यह भी कहा गया है कि ये युवक औसतन 70 मिनट हर दिन इंटरनेट पर बिताते हंै जबकि 44 मिनट किसी पत्रिका को पढ़ने में और 32 मिनट समाचार पत्र पढ़ने में देते हैं। ऐसे में यह साफ दिखता है कि भारत का युवा वर्ग रोजाना लगभग पांच घंटे किसी न किसी प्रकार मीडिया के साथ जुड़कर गुजारता है। यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण और बड़ा हिस्सा है। ऐसे में स्कूल और काम पर प्रभाव पड़ना बहुत स्वाभाविक है। साक्षर लोगों में से 24 प्रतिशत घरों में प्रतिदिन अखबार आता है। हर आठ घरों में से दो घर जिनमें स्नातक रहते हैं या हर आठ में से एक घर जहां 12वीं वाले रहते हों वहां एक न एक पत्रिका अवश्य ली जाती है। सर्वेक्षण में यह भी पाया गया है कि खाली वक्त में लड़कों के मुकाबले लड़कियां पढ़ने में ज्यादा दिलचस्पी रखती हैं, जबकि अखबार पढ़ने में लड़के ज्यादा रुचि दिखाते हैं। 

साक्षर युवाओं को टीवी के मुकाबले अखबार पर ज्यादा भरोसा होता है, जबकि 75 प्रतिशत इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले युवाओं ने अपना ज्यादा भरोसा जताया है। भारत के 65 प्रतिशत लोगों के घरों में टीवी है, जबकि 54 प्रतिशत घरों में मोबाइल की उपलब्धता है। इसी तरह 27 प्रतिशत घरों में रेडियो है, जबकि पांच प्रतिशत के पास इंटरनेट कनेक्शन है। इंटरनेट के इस्तेमाल के लिए 46 प्रतिशत युवा इंटरनेट कैफे पर आश्रित हैं। 23 प्रतिशत युवाओं के घर पर इंटरनेट है, जबकि 13 प्रतिशत दफ्तर में ही इसका इस्तेमाल कर पाते हैं। इसके अलावा यदि हम भाषा की बात करें तो पाते हैं कि युवा आसानी से पढ़ी जाने वाली भाषाओं के पक्ष में नजर आते हैं। 34 प्रतिशत युवकों का कहना है कि उन्हें हिंदी पढ़ने में ज्यादा आसानी होती है। जबकि 13.2 प्रतिशत मराठी और 7.7 प्रतिशत लोग बंगाली भाषा में पढ़ने में आसानी महसूस करते हैं। इसके विपरीत अंग्रेजी भाषा में पढ़ने में आसानी महसूस करने वाले सिर्फ 5.3 प्रतिशत युवक हैं। अब यह सरकार पर है कि वह किस तरह की नीति तय करती है ताकि आने वाले समय में भारत एक नया इतिहास लिख सके(मिर्ज़ा एबी बेग,दैनिक जागरण,21.11.2010)।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।