उत्तर प्रदेश के वाराणसी के स्नातक छात्रों ने यतीम बच्चों और उपेक्षित बुजुर्गो को सहारा देने के लिए एक अनाथालय स्थापित कर युवाओं के लिए समाजसेवा की एक मिसाल पेश की है।
मध्यवर्गीय परिवारों से सम्बंध रखने वाले विभिन्न कॉलेजों के सात छात्र बेसहारा बुजुर्गो और सड़कों पर जीवन गुजारने वाले बच्चों के लिए अनाथालय 'मातृछाया' चला रहे हैं। वाराणसी शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर करसड़ा गांव स्थित इस अनाथालय में फिलहाल पंद्रह बेसहारा बुजुर्ग और छह यतीम बच्चे हैं।
'मातृछाया' चलाने वाले छात्रों में से एक सुमित उपाध्याय, वाराणसी स्थित काशी विद्यापीठ में बीएससी अंतिम वर्ष के छात्र हैं। सुमित कहते हैं कि 'मातृछाया' उनके लिए दूसरे घर जैसा है, यहां रहने वाले बुजुर्ग और बच्चे उनके परिवार का हिस्सा हैं।
गंगा नदी के घाट पर अक्सर शाम को मिलकर समय बिताने वाले तीन छात्रों ने 2009 में इस अनाथालय को स्थापित करने की परिकल्पना रची थी। सुमित कहते हैं वह और उनके साथी दिनभर पढ़ाई करने के बाद अक्सर शाम को गंगा घाट पर सैर करने के लिए जाते थे। वहां वे बेसहारा बच्चों और बुजुर्गो को मदद की आकांक्षी निगाहों से उनकी तरफ देखते हुए पाते थे।
सुमित के मुताबिक एक दिन वह उनके मित्रों किशन शाह और विजय कुमार के साथ घाट पर बैठे थे तभी उन्होंने एक सम्भ्रांत परिवार की एक बुजुर्ग महिला को रोते हुए देखा। जब उन्होंने उससे रोने की वजह पूछी तो उसने बताया कि दस दिन पहले उसके पति की मौत हो गई थी और अब उसके बेटों ने उसे सहारा देने के बजाए बोझ बताकर घर से जबरन निकाल दिया।
हरीशचंद्र डिग्री कॉलेज में बी.कॉम की पढ़ाई करने वाले विनय कुमार कहते हैं कि सभी साथियों ने आपस में विचार-विमर्श करके एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की मदद से महिला को बुजुर्गो के अनाथालय में भेज दिया और वे अक्सर घाट पर जाकर गरीबों और बेसहारा लोगों की मदद करने लगे।
समय बीतने के साथ तीनों ने फैसला किया कि अगर वे अनाथालय स्थापित करें तो जरूरतमंदों की बेहतर ढंग से सेवा कर सकते हैं। इसी दौरान कुमार के एक रिश्तेदार को जब उनके इस नेक इरादे के सम्बंध में पता चला तो उन्होंने उन्हें दो कमरों और दो हॉल के उनके खाली पड़े घर में अनाथालय खोलने की इजाजत दे दी।
छात्रों ने घर की थोड़ी सी मरम्मत और रंगाई-पुताई के बाद जनवरी 2010 में 'मातृछाया' का स्थापना की। इन छात्रों के सहपाठियों को जब इनके इस नेक काम के बारे में पता चला तो कई अन्य भी बेसहारा और गरीबों को सहारा देने के इस मिशन में शामिल हो गए।
छात्र कहते हैं कि बच्चों और बुजुर्गो के सहयोग से उन्हें अनाथालय चलाने मे कोई परेशानी नहीं आती। बच्चे, बुजुर्गो की सेवा करते हैं तो वृद्धजन उन्हें गोद में बिठाकर शिक्षा और संस्कार का पाठ पढ़ाते हैं(दैनिक भास्कर,वाराणसी,21.11.2010)।
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