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05 नवंबर 2010

झारखंड में माध्यमिक शिक्षा अभियान

झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने संभवत: इस सत्य को भलीभांति समझा है कि शैक्षणिक ढांचे को सुदृढ़ किए बिना प्रदेश के विकास की ठोस नींव नहीं रखी जा सकती है। सो, सीएम की प्राथमिकता सूची में शिक्षा फिलहाल पहले पायदान पर है। यह स्वागत योग्य व प्रशंसनीय है। आठवीं कक्षा की समस्त छात्राओं को साइकिल प्रदान किए जाने की घोषणा के बाद मुंडा ने माध्यमिक शिक्षा परियोजना परिषद के माध्यम से प्रदेश में शिक्षा की लौ को तेज करने का एलान किया है। परिषद के अध्यक्ष होने के नाते उन्होंने माध्यमिक शिक्षा अभियान की शुरूआत कर दी है। किसी भी छात्र के संपूर्ण करियर में माध्यमिक शिक्षा की खास अहमियत होती है। यूं कहें कि माध्यमिक शिक्षा ही जीवन की दशा-दिशा तय करती है तो गलत नहीं होगा। फिलहाल झारखंड में कहने को तो हजारों हाईस्कूल हैं लेकिन पांचवीं से नौवीं के बीच ही बड़ी संख्या में बच्चे स्कूलों से मुंह मोड़कर रोजी-रोटी की जुगाड़ में लग जाते हैं। यह अधूरी शिक्षा जिंदगी में बस हस्ताक्षर भर करने की सौगात दे जाती है। पढ़-लिखकर कुछ बन पाने का सपना दम तोड़ जाता है। मुख्यमंत्री ने सूबाई शिक्षा व्यवस्था की इसी अशक्त कड़ी को पहचाना है। लक्ष्य है कि ग्रास इनरालमेंट रेशियो को 2012 तक सौ प्रतिशत के आंकड़े पर लाया जाए। साथ ही ड्राप आउट की संख्या में प्रभावी कमी हो लेकिन इन सबके लिए पारदर्शी मानिटरिंग की सख्त जरूरत पड़ेगी अन्यथा सर्वशिक्षा अभियान की तरह फर्जीवाड़े होंगे। इसे स्वीकार करना होगा कि कागजों पर आंकड़ों के खेल मात्र से शिक्षा में राज्य की गाड़ी रफ्तार नहीं पकड़ने वाली है वरन जमीन पर काम करना होगा। जो कमियां हैं, उन्हें ईमानदारी के साथ दूर करनी होंगी। अगर ये दोनों लक्ष्य प्राप्त हो जाते हैं तो यह झारखंड में शिक्षा के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा। माध्यमिक शिक्षा के अपेक्षित मुकाम को हासिल करने में सबसे बड़ा रोड़ा पाठशालाओं की कमी है। यह अच्छी बात है कि शासन ने इस समस्या के निदान को तीन सौ माध्यमिक विद्यालयों को हाईस्कूल के रूप में उत्क्रमित करने की बात कही है किंतु इस दिशा में यह अवश्य ध्यान रखना होगा कि उत्क्रमित विद्यालयों में तदनुरूप आवश्यक संसाधन भी उपलब्ध हों। हाईस्कूलों को इंटर विद्यालय में उत्क्रमित करने का अनुभव सुखद नहीं रहा है। इंटर स्कूलों की कमी दूर करने को ऐसा कर तो दिया गया लेकिन संसाधन उच्च विद्यालय के ही मौजूद रहे। ऐसे ही सालों इंटर स्कूल चलते रहे व क्वालिटी एजूकेशन की ऐसी की तैसी होती रही। इस तरह के प्रकरण माध्यमिक शिक्षा अभियान के साथ न जुड़ें(संपादकीय,दैनिकजागरण,रांची,5.11.2010)।

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