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16 नवंबर 2010

डीयूःकोर्ट ने पूछा, स्टूडेंट्स क्यों सफर करें?

हाई कोर्ट ने कहा कि सेमेस्टर विवाद के कारण डीयू के टीचर को कानून अपने हाथ में लेने का कोई अधिकार नहीं है। अदालत ने साफ किया कि इस मामले में स्टूडेंट्स क्यों सफर करें ? अदालत ने साफ लफ्जों में कहा कि टीचर पहले सेमेस्टर सिस्टम से पढ़ाएं और उसके बाद दूसरी बातें होंगी। हाई कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि टीचर्स को जो भी आपत्ति है वह डीयू के सामने दर्ज करा सकते हैं लेकिन कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं है। अदालत ने कहा कि टीचर स्टूडेंट्स के भविष्य से न खेलें।

सुनवाई के दौरान डूटा की ओर से कहा गया कि नए सेमेस्टर सिस्टम का कंटेंट ठीक नहीं है और बतौर टीचर वह इस बात को जानते हैं इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि अगर आपको कोई आपत्ति है तो इसके लिए आप वीसी से कह सकते हैं लेकिन एनुअल सिस्टम और नए सेमेस्टर सिस्टम में क्या बेहतर है इस बारे में यूनिवर्सिटी अथॉरिटी बताएगी न कि आप। अदालत ने कहा कि डीयू का प्रत्येक टीचर स्टूडेंट को पढ़ाने के लिए जवाबदेह है।

सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने डूटा से स्पष्ट लहजे में पूछा कि किस कानून के तहत वह स्ट्राइक पर गए। इस पर हाई कोर्ट से कहा गया सत्याग्रह उनका अधिकार है तब हाई कोर्ट ने कड़े शब्दों में पूछा कि क्या आप बताएंगे कि सत्याग्रह के लिए कोई अलग से कानून है ? इस पर टीचरों की ओर से कहा गया कि ऐसा कोई कानून नहीं है। हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि अगर ऐसा है तो आपने स्ट्राइक का रास्ता कैसे चुन लिया। अगर आपको कोई आपत्ति है तो आप इसके लिए आप संबंधित अथॉरिटी के सामने बात उठा सकते हैं लेकिन आप कानून हाथ में कैसे ले सकते हैं।

अदालत ने कहा कि यह लोकतांत्रिक देश है और सिविल सोसायटी है। एजुकेशन और टीचर के प्रति इस देश में शुरू से आदर रहा है। दो हजार साल पहले कौटिल्य ने पढ़ाई के महत्व को समझाया था। टीचरों को यह समझना चाहिए कि उनकी ड्यूटी है कि वह स्टूडेंट को पढ़ाएं। अच्छी शिक्षा से ही शांति कायम रह सकती है साथ ही आर्थिक और सामाजिक विकास भी तभी संभव है जब एजुकेशन सिस्टम ठीक तरह के काम करे। अदालत ने साफ कहा कि टीचर्स को यह याद रखना चाहिए कि यह लोकतांत्रिक देश है और यहां कानून का राज है और एजुकेशन में भी यह लागू होता है(राजेश चौधरी,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,16.11.2010)।

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