मुख्य समाचारः

सम्पर्कःeduployment@gmail.com

25 नवंबर 2010

शब्द-शक्ति

ऊर्जा शब्द शक्ति हमारी सृष्टि वाक् सृष्टि है। वाक् के दो रूप होते हैं-एक अर्थवाक् और दूसरा शब्द वाक्। अर्थवाक् की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी तथा शब्द वाक् की अधिष्ठात्री देवी महासरस्वती हैं। शब्द जीवन-व्यवहार का अभिन्न अंग है। इसके अभाव में व्यावहारिक आदान-प्रदान की क्रिया अति सीमित व संदिग्ध हो जाती है। जीवन आनंद की प्राप्ति हेतु शब्द को ही मंत्र के रूप में प्रयोग किया जाता है। शब्द की शक्ति का ज्ञान प्राप्त करके ही विद्वानों ने इसे ब्रह्मस्वरूप माना। एक ही शब्द का भली प्रकार ज्ञान प्राप्त करके तद्नुसार व्यवहार करने से इहलोक तथा परलोक में कल्याणकारी तत्वों की प्राप्ति सम्भव है। सृष्टि के आदि में शब्द का मूल आधार नाद ही माना जाता है। वाक् की चार स्थितियां हैं-परा, पश्यंति, मध्यमा और वैखरी। वैखरी शब्द का स्थूल रूप है। स्थूल शब्द के भेदों को अनेक श्रेणियों में बांटा गया है। उदात्त, अनुदात्त और स्वरित के भेदों से शब्दोच्चारण को सात स्वरों में बांटा गया है। शुद्ध सात्विक भाव का शब्द मंत्र कहलाता है। मनन करने से त्राण अथवा रक्षा करने वाले शब्द को मंत्र कहते हैं। मंत्र के अभ्यास से मलिनता अथवा दोषों से मुक्ति प्राप्त होती है। मंत्र के जप को उच्चारण के अनुसार वाचिक, उपांशु तथा मानस-इन तीन श्रेणियों में बांटा गया है। जिस जप में शब्द स्पष्ट उच्चारणपूर्वक ध्वनि के साथ सुनाई दे उसे वाचिक कहते हैं। जिसमें शब्द सुनाई नहीं देता, किंतु होंठ हिलते दिखाई दें, उसे उपांश तथा अर्थज्ञान पूर्वक मन से ही किया जाने वाला जप मानस जप कहलाता है। शब्द की यह सूक्ष्म अवस्था ही श्रेष्ठतम है। जो कुछ सृष्टि में है, वह सब हमारे शरीर में वैसा ही है। इसके अनुसार वाक् की चारों स्थितियां हमारे शरीर के भीतर भी हैं। परा वाक् का स्थान मूलाधार है। आत्मा-बुद्धि के द्वारा अर्थो को लेकर मन के साथ बोलने की इच्छा से युक्त होती है-परावाक् (डॉ. सुरचना त्रिवेदी,दैनिक जागरण,25.11.2010)

1 टिप्पणी:

टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।