दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने पहले तो गलत आरक्षण नीति अपनाते हुए अन्य पिछड़ा वर्ग की एक छात्रा को दाखिला देने से इंकार कर दिया और मामला हाईकोर्ट में आने पर उसे दाखिला नहीं देने के लिए सीट की कमी और संसाधन न होने का बहाना बनाने लगा। हाईकोर्ट ने डीयू के बहाने को दरकिनार करते हुए कहा है कि संसाधनों की कमी के आधार पर किसी छात्र/छात्राओं को दाखिला देने से इंकार नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडलॉ ने उपरोक्त टिप्पणी करते हुए डीयू को नॉन-कॉलेजिएट वूमेन्स एजूकेशन बोर्ड (एनसीडब्लूईबी) में पीड़ित छात्रा रेखा को मास्टरऑफ आर्ट्स (अंग्रेजी) में दाखिला देने को कहा है। हाईकोर्ट ने रेखा को भी दाखिला की सभी प्रक्रिया व शर्तें पूरी करने कोक हा है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने डीयू की उन दलीलों को खारिज कर दिया है जिसमें कहा गया था कि एनसीडब्लूईबी में दाखिला देने के लिए जगह तो है लेकिन रेखा को दाखिला इसलिए नहीं दिया जा सकता है क्योंकि पहले से दाखिला ले चुके छात्राओं की सप्ताहिक क्लास में बैठने की जगह नहीं है।
पहले भी उठा था विवाद
जेएनयू ओबीसी कोटे के तहत सिर्फ ऐसे छात्र/छात्राओं कोहीदाखिला देता था देता था जो कटऑफ सूची में दाखिला पाने वाले सामन्य श्रेणी के अंतिम छात्र से सिर्फ दस फीसदी कम अंक हो। जेएनयू अन्य पिछड़ावर्ग के श्रेणी में ऐसे छात्रों कोदाखिला नहीं देते थे जिन्हें दाखिला पाने वाले समान्य श्रेणी के अंतिम छात्र से दस फीसदी से कम अंक हासिल किया हो।
हाईकोर्ट का फैसलाःकटऑफ नहीं न्यूनतम योग्यता होनी चाहिए
हाईकोर्ट ने अपूर्वा बनाम भारत सरकारवजेएनयू के इस आरक्षण नीति कोरद्दक रते हुएक हा था कि ओबीसी कोटे के तहत दाखिला देने के लिए समान्य श्रेणी के अंतिम छात्र को प्राप्त अंक (क टऑफ )से दस फीसदी कमअंक कोआधार नहीं बनाया जा सक ता है।हाईकोर्टने कहाकि समान्य श्रेणी के लिए तय न्यूनतम योग्यता से दस फीसदी कम ओबीसी की न्यूनतम योग्यता होनी चाहिए(प्रभात कुमार,हिंदुस्तान,दिल्ली,8.11.2010)।
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