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18 नवंबर 2010

मध्यप्रदेशःतीसरे साल भी भंवर में बी.एड.

तीन साल से बीहड़ में तब्दील बैचलर ऑफ एजूकेशन बीएड इस साल भी डूबता नजर आ रहा है। डेढ़ साल तक अदालती दांवपेंच में उलझा रहा यह पाठ्यक्रम एक बार फिर कठघरे में पहुंचने लगा है। लगातार गहराते विवाद के चलते वर्तमान सत्र 2010-11 पर भी जीरो ईयर का साया गहराता जा रहा है। राज्य शासन द्वारा चुपके से जीरो ईयर किए गए सत्र 2008-09 का विवाद अभी तक थमने का नाम नहीं ले रहा है। सत्र 2009-10 में प्रवेश होते ही करीब आधा सैकड़ा कालेज अपनी-अपनी प्रवेश सूची लेकर अदालत में खड़े हो चुके हैं। उच्च शिक्षा विभाग की हालत यह है कि उसे जवाब देना मुश्किल पड़ रहा है। ऐसे में सत्र 2010-11 भी हाथ से निकलता देख कालेज संचालक सक्रिय हो गए हैं। लगातार तीन महीने से काउंसलिंग का इंतजार करते हुए कालेज संचालक खुद ही प्रवेश देने में जुट गए हैं। प्रवेश प्रक्रिया शुरू करने के साथ ही कालेज संचालकों ने अदालत जाने की तैयारी भी शुरू कर दी है। कालेजों की इन तैयारियों के बीच राज्य शासन की खींचतान को देखते हुए लगातार तीसरे साल भी वीरानी छाए रहने की शंका जताई जाने लगी है। कोई नहीं छोड़ेगा मौका: राज्य शासन ने सत्र 2009-10 में 383 कालेजों में प्रवेश दिए हैं। इस काउंसलिंग के बाद खाली सीटों के लिए तो कालेजों ने खुद प्रवेश दे ही दिए हैं। शासन द्वारा जीरो ईयर घोषित 2008-09 में भी सभी ने प्रवेश कर रखे हैं। अदालत में दलील भी ऐसी दी है कि शासन खुद ही परेशानी में आ गया है। राज्य शासन ने इसके लिए कोई विधिवत आदेश नहीं निकाला था। काउंसलिंग भी पहले 2008 के लिए बताई थी, बाद में इसे 2009-10 के प्रवेश बताया जाने लगा। मगर किसी तरह का संशोधित आदेश इस संबंध में भी नहीं निकाला गया। इसके चलते कालेजों द्वारा दिए गए प्रवेश ही मान्य किए जाने की संभावना बनने लगी है। विभाग की हालत यह है कि इस मामले में चुप्पी साधना ही उचित माना जा रहा है। यही वजह है कि अपनी ओर से कोई करारा जवाब देने की बजाय कालेजों द्वारा लगाए गए आरोपों पर ही विभाग की ओर से दलील दी जा रही हैं। इसलिए है बैचेनी: वजह बिल्कुल साफ है, कोई भी सरकार की गलती से खुद का नुकसान नहीं करना चाहता। पड़ोसी राज्यों में बड़ी संख्या में भर्ती के लिए पद निकले हुए हैं। वहीं राज्य शासन भी अब संविदा शिक्षक की भर्ती परीक्षा के लिए बीएड-डीएड अनिवार्य करने जा रही है। इसे देखते हुए बीएड की खासी डिमांड होने की आशा जाग गई है। इसे देखते हुए कालेज भी अधिक से अधिक सीटों पर प्रवेश देने की उठापटक में जुट गए हैं। यदि दोनों ही सालों की सीटें मिल जाती हैं तो कालेजों को एक साथ 200 सीटों पर प्रवेश देने का मौका मिल जाएगा। जबकि शासन की गति देखते हुए कालेजों को तीसरा साल भी विवाद में बीत सकता है(दैनिक जागरण,भोपाल,18.11.2010)।

1 टिप्पणी:

  1. प्रजा के हितों की रक्षा करना शायद आधुनिक शासको को आता ही नहीं

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