परीक्षा के दिन जैसे-जैसे निकट आते जाते हैं, पढ़ाई के घंटों में वृद्धि होती जाती है। अभ्यर्थियों की दिनचर्या में मनोरंजन का समय भी बहुत छोटा हो जाता है। बहुत से अभ्यर्थी नींद भी पूरी नहीं लेते। इससे कई बार अवसाद के लक्षण दिखाई पड़ने लगते हैं। इससे परीक्षा परिणाम तो प्रभावित होता ही है, स्वास्थ पर भी खराब असर पड़ता है। इन सब से बचने के लिए जरूरी है कि दिनचर्या सामान्य हो। स्वयं के लिए अनावश्यक दबाव न पैदा किया जाए। इस संबंध में आयुर्वेदिक चिकित्सक डा. मनोज कुमार सिंह का कहना है कि दिनचर्या को हर संभव नियमित किया जाना चाहिए। परीक्षा के दिनों में अधिक तला भुना या मसालेदार पदार्थ नहीं लेना चाहिए। कई बार छात्र सुबह के समय अंकुरित चने का भी प्रयोग करते हैं, परीक्षा के दिनों में यह ठीक नहीं है। भोजन में सलाद का भी प्रयोग परीक्षा के दौरान नहीं करना चाहिए। हां अधिक कैलोरी के लिए भीगे बादाम का प्रयोग किया जा सकता है। कई बार यह भी देखा जाता है कि नींद दूर करने के लिए छात्र-छात्राएं तमाम उपाय करते हैं। मसलन, आंखों पर बर्फ की पट्टी रखना या फिर किसी ऐसे पदार्थ का लेप लगाना, जिससे जलन पैदा हो। यह बिल्कुल न करें। परीक्षा निकट आने पर पेट खराब होने या फिर कब्ज आदि की समस्याएं देखी जाती हैं। जब ऐसा हो तो कुछ औषधियों को लिया जा सकता है। हां अधिक तनाव हो तो योग का सहारा लेना चाहिए। इसमें अनुलोम-विलोम लाभ देता है। शरीर और मन को शांत करने के लिए शव आसन भी किया जाना चाहिए। प्रतिदिन पांच से छह घंटे की नींद जरूर पूरी करनी चाहिए। अवसाद से बचाव में सहायक औषधियां वात, पित्त और कफ में व्यतिक्रम होने पर परेशानी होती है। छात्रों में यदि संज्ञा स्थापना अर्थात स्मरण शक्ति कमजोर होने की शिकायत हो तो शंखपुष्पी का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। मेदा अर्थात पेट में समस्या हो तो ब्राह्मी, ज्योतिषमति, सतावरी लेना चाहिए। सतावरी पांच भाग, जटामासी तीन भाग, ब्राह्मी तीन भाग और गुर्च पांच भाग मिलाकर चूर्ण के रूप में प्रतिदिन शहद या दूध के साथ तीन से पांच ग्राम लेना चाहिए। पेट की समस्या में त्रिफला चूर्ण भी लाभ देता है। अवसाद से बचने के लिए वचा, जटामाफी, अश्र्वगंधा समान भाग में लें(दैनिक जागरण,इलाहाबाद,11.11.2010)।
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