इंजीनियरिंग की दूसरी शाखाओं के समान एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग भी एक बेहद चुनौतीपूर्ण शाखा है, जो आज युवा ग्रेजुएट्स को आगे बढ़ने के व्यापक अवसर उपलब्ध करा रही है। इंजीनियरिंग की यह विधा एयरक्राफ्ट की डिजाइनिंग, निर्माण, विकास, परीक्षण, संचालन और उचित रखरखाव से जुड़ी है।
इन दिनों यह क्षेत्र एयरोस्पेस इंजीनियरिंग का पर्याय बन गया है, जिसमें कुछ अतिरिक्त विषय मसलन सैटेलाइट तथा मिसाइलों की लांचिंग व डायनामिक्स का तकनीकी अध्ययन भी शामिल है।
बढ़ती मांग
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग एंड इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (आईआईएईआईटी), पुणो के निदेशक एमआर पाटकर कहते हैं कि हमारे यहां दक्ष एयरोनॉटिकल इंजीनियरों की काफी कमी है क्योंकि बहुत कम संस्थानों में इससे जुड़ा कोई पाठ्यक्रम उपलब्ध है और जहां यह पाठ्यक्रम है भी, वहां छात्रों के लिहाज से सीटों की संख्या बहुत सीमित है।
अपने देश में ही हमें हर साल 2000 से ज्यादा एयरोनॉटिकल इंजीनियर चाहिए। साफ है कि एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग के छात्रों को नौकरी के लिए इंतजार करने की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि उन्हें अपना पाठ्यक्रम पूर्ण करने से पहले ही अच्छी-अच्छी नौकरियों के प्रस्ताव मिल जाते हैं।
ये लोग किसी विमान के रखरखाव और मरम्मत से जुड़े कामों में प्रशिक्षित होते हैं। कार्य में छह महीने से ज्यादा का अनुभव हासिल करने के बाद उन्हें असिस्टेंट एयरक्राफ्ट इंजीनियर या असिस्टेंट टेक्नीकल ऑफीसर के तौर पर पदोन्नत किया जा सकता है। इस क्षेत्र से जुड़े प्रोफेशनल्स का दिमागी रूप से हमेशा सजग रहना और गणितीय आकलन सटीक होना चाहिए क्योंकि इसमें जरा सी चूक बहुत भारी पड़ सकती है।
शैक्षणिक योग्यता
एयरोनॉटिकल इंजीनियर बनने के लिए आपके पास एयरोनॉटिक्स में बीई या बीटेक जैसी ग्रेजुएट डिग्री होनी चाहिए। देश के प्रतिष्ठित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) के अलावा कुछ अन्य इंजीनियरिंग संस्थानों में एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग से जुड़े डिग्री व पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री कोर्स उपलब्ध हैं।
इसके अलावा कुछ पॉलीटेक्निक कॉलेज इस विधा से जुड़ा डिप्लोमा कोर्स भी करवाते हैं। इससे जुड़े डिग्री कोर्स की अवधि चार साल होती है, वहीं डिप्लोमा कोर्स अमूमन दो से तीन साल का होता है। इन पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने के लिए अभ्यर्थी का विज्ञान व गणित विषय के साथ बारहवीं परीक्षा न्यूनतम 60 फीसदी अंकों के साथ उत्तीर्ण होना जरूरी है। इन कोर्सेस में दाखिला प्रवेश परीक्षाओं के माध्यम से होता है।
एयरोनॉटिकल सोसायटी ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित एसोसिएट मेंबरशिप एग्जामिनेशन ऑफ द इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स (एएमआईई) कामकाजी प्रोफेशनल्स व डिप्लोमाधारियों को यह सुविधा देता है कि वे दूरस्थ शिक्षा प्रणाली के जरिए इस विधा में बैचलर इंजीनियरिंग डिग्री हासिल कर सकें। यह डिग्री एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग डिग्री के समकक्ष होती है।
विशिष्ट क्षेत्र
एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में कई स्पेशलाइजेशन कोर्स हैं। इस विधा से जुड़े ग्रेजुएट्स चाहें तो स्ट्रक्चरल डिजाइन, नेवीगेशन गाइडेंस एंड कंट्रोल सिस्टम, इंस्ट्रूमेंटेशन एंड कम्युनिकेशन, विमान की निर्माण तकनीक या किसी खास विमान मसलन मिलेट्री एयरक्राफ्ट, यात्री विमान, हैलीकॉप्टर्स, उपग्रहों, रॉकेट इत्यादि में विशेषज्ञता हासिल कर सकते हैं।
व्यक्तिगत योग्यता
एयरोनॉटिकल इंजीनियर बनने के लिए आपके पास तीक्ष्ण प्रेक्षण दृष्टि और समस्याओं को आसानी से सुलझाने की कला होनी चाहिए। इस काम के लिए मेनुअल, टेक्नीकल व मैकेनिकल रुझान होना जरूरी है। आपके पास बेहतर तार्किक क्षमता, संप्रेषण योग्यता और कंप्यूटर पर तेजी से काम करने की क्षमता होनी चाहिए।
इन्हें दबाव में भी काम करना आना चाहिए। एक एयरोनॉटिकल इंजीनियर से यह अपेक्षा की जाती है कि वह वह शारीरिक रूप से फिट हो तथा खासकर विमान पर यात्रियों या माल के चढ़ने-उतरने के दौरान तेजी से विमान की जांच व मरम्मत का काम संभाल सके। उनकी आंखों की दृष्टि भी ठीक होनी चाहिए और वर्र्णाधता किस्म का कोई दोष नहीं होना चाहिए।
रोजगार के अवसर
आज दक्ष एयरोनॉटिकल इंजीनियरों की सरकारी व निजी एयरलाइन कंपनियों, विमान निर्माता कंपनियों और इसके रखरखाव की सेवा मुहैया कराने वाली कंपनियों में समान रूप से जबरदस्त मांग है। ये रक्षा अनुसंधान व विकास संबंधी संस्थानों, नेशनल एयरोनॉटिकल प्रयोगशालाओं, एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट संस्थापनाओं, नागरिक उड्डयन विभाग, प्रतिरक्षा सेवाओं और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में भी रोजगार पा सकते हैं। इस विधा के इंजीनियर्स विमान के डिजाइन, विकास और रखरखाव संबंधी क्षेत्रों में काम कर सकते हैं, वहीं इससे जुड़े प्रोफेशनल्स विभिन्न संस्थानों में प्रबंधकीय व शिक्षण के पदों पर भी काम कर सकते हैं।
पारिश्रमिक
इस क्षेत्र में व्यक्ति का पारिश्रमिक उसकी शैक्षणिक योग्यता और अनुभव पर निर्भर करता है। सरकारी या पब्लिक सेक्टर मसलन हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल), नेशनल एयरोस्पेस लेबोरेट्रीज (एनएएल) में आपका शुरुआती वेतन 8,000 से 10,000 रुपए मासिक तक हो सकता है (भत्तों को छोड़कर)।
प्राइवेट सेक्टर में आपके वेतन का निर्धारण मैनेजमेंट द्वारा किया जाता है, जो अमूमन 8,000 से 15,000 रुपए प्रतिमाह तक हो सकता है। इसके अलावा आपको कुछ भत्ते व अन्य सुविधाएं भी मिल सकती हैं।
इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स जिनके पास मैनेजमेंट की डिग्री भी है, उन्हें शुरुआती स्तर से 10,000 से 40,000 रुपए मासिक वेतन व अन्य लाभ तथा सुविधाएं मिल सकती हैं। विदेशों में भी आपके लिए कई मौके हैं। अमेरिका के नासा जैसे संस्थान में यदि आपको नौकरी मिलती है, तो वहां आपका शुरुआती वेतन 1,00,000 से 1,50,000 डॉलर तक हो सकता है(दैनिक भास्कर,1.11.2010)।
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंक्या बी तेक भी एयरोनाटिकल मे ही होना चाहिये? अच्छी जानकारी है धन्यवाद। आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंबहोत ही अच्छी जानकारी
जवाब देंहटाएंआपको सपरिवार दिवाली की ढेर सारी शुभकामनाएँ