सुप्रीम कोर्ट ने पूर्ववर्ती चौटाला सरकार के कार्यकाल के दौरान नियुक्त हरियाणा लोकसेवा आयोग के सभी सदस्यों को करारा झटका देते हुए उनके खिलाफ भेजे राष्ट्रपति के संदर्भ को मंजूर कर लिया है।
संदर्भ को मंजूरी मिलने के साथ ही निलंबित चल रहे आयोग के चेयरमैन और दो अन्य सदस्यों की बर्खास्तगी का रास्ता साफ हो गया है जबकि छह अन्य का कार्यकाल निलंबन के दौरान पहले ही पूरा हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रपति सचिवालय को संदर्भ की प्रति भेज दी गई है जिसके बाद आयोग के चेयरमैन व दो सदस्यों की बर्खास्तगी के आदेश जल्दी ही जारी कर दिए जाने की उम्मीद है।
राष्ट्रपति के संदर्भ पर फैसला मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाड़िया, न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और स्वतंत्र कुमार की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने शुक्रवार को खुली अदालत में सुनाया। पूरे 116 पेज के इस फैसले में (प्रति दैनिक भास्कर के पास) में लोकसेवा आयोग के सदस्यों पर संदर्भ में उल्लेखित नौ में से 6 आरोपों को कोर्ट ने सही करार दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि उसे यह कहने में संशय नहीं है कि आयोग के सदस्यों ने चयन प्रक्रिया की जांच में सहयोग नहीं किया और अदालती आदेशों के बावजूद इसे रोकने के लिए रिकार्ड देने में आनाकानी की। चयन में गड़बड़ी, अनियमितता छिपाने के लिए विशेषाधिकार को ढाल बनाया गया। आयोग के संवैधानिक संस्था होने के नाम पर चेयरमैन व सदस्यों ने अपेक्षित व्यवहार नहीं दिखाया। इसके लिए उन्होंने न केवल असहयोग किया बल्कि जांच लटकाने व बाधित करने के प्रयास किए। जांच अब तक लंबित है।
फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने संदर्भ में उल्लेखित आरोपों की जांच के बाद कहा कि 9 में से छह आरोप साबित होते हैं जबकि दो इसके दायरे से बाहर हैं। पहला आरोप साबित नहीं हो पाया है। संविधान के अनुच्छेद 317 (1) के तहत अदालत ने सदस्यों व चेयरमैन को र्दुव्यवहार का दोषी ठहराते हुए कहा है कि उन्हें उनके पदों से हटाने के लिए पर्याप्त आधार है। इसमें चयन प्रक्रिया में संपूर्णता एवं सत्यनिष्ठा न बरतने के दोष भी हैं।
कोर्ट ने कहा कि उल्लेखित टिप्पणियों का चयन प्रक्रिया के संबंध में लंबित अदालती मामलों पर प्रभाव नहीं होगा। इन मामलों को बिना इस फैसले से प्रभावित हुए निर्णय तक पंहुचाने की बात भी कही गई है। साथ ही संबंधित पक्ष संदर्भ को लेकर अपनी आपत्तियां उनके पास उपलब्ध कानूनी प्रावधानों के तहत उठाने के लिए स्वतंत्र होंगे।
यह था मामला
हरियाणा की मौजूदा हुड्डा सरकार के पहले कार्यकाल में आयोग के सदस्यों पर चयन प्रक्रिया में अनियमितताओं को लेकर यह मामला शुरू हुआ। प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव ने 18 दिसंबर 2006 को साक्ष्यों के साथ राज्यपाल को आयोग के सदस्यों को हटाने की प्रक्रिया शुरू करने का आग्रह किया। राज्यपाल ने 16 जनवरी 2007 को मामला राष्ट्रपति के पास भेज दिया।
राष्ट्रपति ने 31 जुलाई 2008 को संविधान के अनुच्छेद 317 (1) के तहत चेयरमैन व 8 सदस्यों पर लगे आरोपों को लेकर संदर्भ सुप्रीम कोर्ट भेज दिया। राज्यपाल ने संदर्भ भेजने के 9 दिन बाद नौ अगस्त, 2008 को विवादित सदस्यों को निलंबित कर दिया। इनमें से 6 का कार्यकाल पहले ही पूरा हो चुका है जबकि चेयरमैन डा. मेहर सैनी का कार्यकाल आगामी 30 नवंबर को पूरा होगा। शेष दो सदस्यों संतोष सिंह व डॉ आरके कश्यप का कार्यकाल 14 दिसंबर को पूरा होना है(हेमंत अत्री,दैनिक भास्कर,दिल्ली,13.11.2010)।
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दैनिक जागरण की रिपोर्टः
सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा पब्लिक सर्विस कमीशन (एचपीएससी) के अध्यक्ष मेहर सिंह सैनी, सदस्य श्रीमती संतोष सिंह व सदस्य राम कुमार कश्यप को पद से हटाने को हरी झंडी दे दी है। कोर्ट ने इन अधिकारियों को पद के दुरुपयोग के आरोप में पद मुक्त करने के लिए राष्ट्रपति की ओर से भेजे गए संदर्भ का जवाब देते हुए कहा है कि अधिकारियों पर आरोप साबित हुए हैं और उन्हें पद से हटाया जाना न्यायोचित होगा। तीनों अधिकारी अगस्त 2008 से निलंबित चल रहे हैं। मालूम हो कि सैनी और संतोष सिंह को 1 दिसंबर 2004 को एचपीएससी में अध्यक्ष व सदस्य नियुक्त किया गया था जबकि राम कुमार कश्यप की नियुक्ति 15 दिसंबर 2004 को हुई थी। ये तीनों इसी वर्ष 30 नवंबर व 14 दिसंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। हरियाणा सरकार ने पद के दुरुपयोग और भर्ती में अनियमितताओं के आरोप में इन्हें पद से हटाने का राष्ट्रपति से अनुरोध किया था। निर्धारित प्रक्रिया के तहत राष्ट्रपति ने इस बाबत जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट को 31 जुलाई 2008 को संदर्भ भेजा था। मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडि़या, न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन व न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार ने तीनों अधिकारियों को पद से हटाए जाने की राष्ट्रपति की संस्तुति से सहमति जताते हुए साफ किया है कि रेफरेंस में प्रकट की गई राय या टिप्पणियां, अन्य अदालतों में लंबित मुकदमों या जांच एजेंसी के समक्ष लंबित जांच के आड़े नहीं आएंगी। हरियाणा सरकार की ओर से अधिकारियों पर नौ आरोप लगाए गए थे। जिनमें कोर्ट ने 4 साबित पाए। इनमें प्रदीप सांगवान की ड्रग इंस्पेक्टर के पद पर भर्ती तथा भर्ती की अनियमितता जांच में जांच एजेंसी को सहयोग नहीं करने के आरोप साबित पाए गए। कोर्ट ने माना कि राज्य लोक सेवा आयोग की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। सभी नागरिकों को बिना पक्षपात के नौकरी का अवसर मिलने के लिए इसका निष्पक्ष और निष्ठावान होना जरूरी है। राज्य सरकार ने अन्य 6 सदस्यों को भी पद से हटाने की संस्तुति भेजी थी, लेकिन इस दौरान शेष 6 सदस्यों ने निलंबन अवधि में ही अपना कार्यकाल पूरा कर लिया। राज्य सरकार का यह भी आरोप था कि भर्ती में पक्षपात और अनियमितता के दोषी अधिकारी इस पद के लिए जरूरी योग्यता नहीं रखते हैं।
संदर्भ को मंजूरी मिलने के साथ ही निलंबित चल रहे आयोग के चेयरमैन और दो अन्य सदस्यों की बर्खास्तगी का रास्ता साफ हो गया है जबकि छह अन्य का कार्यकाल निलंबन के दौरान पहले ही पूरा हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रपति सचिवालय को संदर्भ की प्रति भेज दी गई है जिसके बाद आयोग के चेयरमैन व दो सदस्यों की बर्खास्तगी के आदेश जल्दी ही जारी कर दिए जाने की उम्मीद है।
राष्ट्रपति के संदर्भ पर फैसला मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाड़िया, न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और स्वतंत्र कुमार की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने शुक्रवार को खुली अदालत में सुनाया। पूरे 116 पेज के इस फैसले में (प्रति दैनिक भास्कर के पास) में लोकसेवा आयोग के सदस्यों पर संदर्भ में उल्लेखित नौ में से 6 आरोपों को कोर्ट ने सही करार दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि उसे यह कहने में संशय नहीं है कि आयोग के सदस्यों ने चयन प्रक्रिया की जांच में सहयोग नहीं किया और अदालती आदेशों के बावजूद इसे रोकने के लिए रिकार्ड देने में आनाकानी की। चयन में गड़बड़ी, अनियमितता छिपाने के लिए विशेषाधिकार को ढाल बनाया गया। आयोग के संवैधानिक संस्था होने के नाम पर चेयरमैन व सदस्यों ने अपेक्षित व्यवहार नहीं दिखाया। इसके लिए उन्होंने न केवल असहयोग किया बल्कि जांच लटकाने व बाधित करने के प्रयास किए। जांच अब तक लंबित है।
फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने संदर्भ में उल्लेखित आरोपों की जांच के बाद कहा कि 9 में से छह आरोप साबित होते हैं जबकि दो इसके दायरे से बाहर हैं। पहला आरोप साबित नहीं हो पाया है। संविधान के अनुच्छेद 317 (1) के तहत अदालत ने सदस्यों व चेयरमैन को र्दुव्यवहार का दोषी ठहराते हुए कहा है कि उन्हें उनके पदों से हटाने के लिए पर्याप्त आधार है। इसमें चयन प्रक्रिया में संपूर्णता एवं सत्यनिष्ठा न बरतने के दोष भी हैं।
कोर्ट ने कहा कि उल्लेखित टिप्पणियों का चयन प्रक्रिया के संबंध में लंबित अदालती मामलों पर प्रभाव नहीं होगा। इन मामलों को बिना इस फैसले से प्रभावित हुए निर्णय तक पंहुचाने की बात भी कही गई है। साथ ही संबंधित पक्ष संदर्भ को लेकर अपनी आपत्तियां उनके पास उपलब्ध कानूनी प्रावधानों के तहत उठाने के लिए स्वतंत्र होंगे।
यह था मामला
हरियाणा की मौजूदा हुड्डा सरकार के पहले कार्यकाल में आयोग के सदस्यों पर चयन प्रक्रिया में अनियमितताओं को लेकर यह मामला शुरू हुआ। प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव ने 18 दिसंबर 2006 को साक्ष्यों के साथ राज्यपाल को आयोग के सदस्यों को हटाने की प्रक्रिया शुरू करने का आग्रह किया। राज्यपाल ने 16 जनवरी 2007 को मामला राष्ट्रपति के पास भेज दिया।
राष्ट्रपति ने 31 जुलाई 2008 को संविधान के अनुच्छेद 317 (1) के तहत चेयरमैन व 8 सदस्यों पर लगे आरोपों को लेकर संदर्भ सुप्रीम कोर्ट भेज दिया। राज्यपाल ने संदर्भ भेजने के 9 दिन बाद नौ अगस्त, 2008 को विवादित सदस्यों को निलंबित कर दिया। इनमें से 6 का कार्यकाल पहले ही पूरा हो चुका है जबकि चेयरमैन डा. मेहर सैनी का कार्यकाल आगामी 30 नवंबर को पूरा होगा। शेष दो सदस्यों संतोष सिंह व डॉ आरके कश्यप का कार्यकाल 14 दिसंबर को पूरा होना है(हेमंत अत्री,दैनिक भास्कर,दिल्ली,13.11.2010)।
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दैनिक जागरण की रिपोर्टः
सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा पब्लिक सर्विस कमीशन (एचपीएससी) के अध्यक्ष मेहर सिंह सैनी, सदस्य श्रीमती संतोष सिंह व सदस्य राम कुमार कश्यप को पद से हटाने को हरी झंडी दे दी है। कोर्ट ने इन अधिकारियों को पद के दुरुपयोग के आरोप में पद मुक्त करने के लिए राष्ट्रपति की ओर से भेजे गए संदर्भ का जवाब देते हुए कहा है कि अधिकारियों पर आरोप साबित हुए हैं और उन्हें पद से हटाया जाना न्यायोचित होगा। तीनों अधिकारी अगस्त 2008 से निलंबित चल रहे हैं। मालूम हो कि सैनी और संतोष सिंह को 1 दिसंबर 2004 को एचपीएससी में अध्यक्ष व सदस्य नियुक्त किया गया था जबकि राम कुमार कश्यप की नियुक्ति 15 दिसंबर 2004 को हुई थी। ये तीनों इसी वर्ष 30 नवंबर व 14 दिसंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। हरियाणा सरकार ने पद के दुरुपयोग और भर्ती में अनियमितताओं के आरोप में इन्हें पद से हटाने का राष्ट्रपति से अनुरोध किया था। निर्धारित प्रक्रिया के तहत राष्ट्रपति ने इस बाबत जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट को 31 जुलाई 2008 को संदर्भ भेजा था। मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडि़या, न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन व न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार ने तीनों अधिकारियों को पद से हटाए जाने की राष्ट्रपति की संस्तुति से सहमति जताते हुए साफ किया है कि रेफरेंस में प्रकट की गई राय या टिप्पणियां, अन्य अदालतों में लंबित मुकदमों या जांच एजेंसी के समक्ष लंबित जांच के आड़े नहीं आएंगी। हरियाणा सरकार की ओर से अधिकारियों पर नौ आरोप लगाए गए थे। जिनमें कोर्ट ने 4 साबित पाए। इनमें प्रदीप सांगवान की ड्रग इंस्पेक्टर के पद पर भर्ती तथा भर्ती की अनियमितता जांच में जांच एजेंसी को सहयोग नहीं करने के आरोप साबित पाए गए। कोर्ट ने माना कि राज्य लोक सेवा आयोग की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। सभी नागरिकों को बिना पक्षपात के नौकरी का अवसर मिलने के लिए इसका निष्पक्ष और निष्ठावान होना जरूरी है। राज्य सरकार ने अन्य 6 सदस्यों को भी पद से हटाने की संस्तुति भेजी थी, लेकिन इस दौरान शेष 6 सदस्यों ने निलंबन अवधि में ही अपना कार्यकाल पूरा कर लिया। राज्य सरकार का यह भी आरोप था कि भर्ती में पक्षपात और अनियमितता के दोषी अधिकारी इस पद के लिए जरूरी योग्यता नहीं रखते हैं।
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