लोगों को प्रशिक्षण देकर रोजगार के लिए सक्षम बनाने वाला जब खुद ही बदहाली का शिकार हो तो उससे ज्यादा उम्मीदें रखना बेमानी ही कहा जाएगा। ऐसा ही कुछ गोहरी गांव स्थित आइईआरटी केंद्र के साथ है। इस केंद्र के कर्मचारी कुछ वर्ष पूर्व तक बेरोजगार लोगों को प्रशिक्षण आदि देकर स्वरोजगार लायक बनाते थे। वक्त की ऐसी मार पड़ी कि आज ये कर्मचारी खुद ही बदहाल हो गए हैं। इलाहाबाद पॉलिटेक्निक की ओर से गोहरी गांव स्थित आइईआरटी केंद्र संचालित किया जाता है। इस केंद्र में सिलाई, कताई, बुनाई, मोटर बाइंडिंग, माचिस उद्योग, कंप्यूटर प्रशिक्षण और गमला तथा काष्ठ कला संबंधी उद्योगों का प्रशिक्षण दिया जाता था। संस्थान में कई दर्जन कर्मचारी थे और इसे विश्वस्तरीय संस्थाओं से अनुदान मिलता था। अस्सी के दशक तक यह केंद्र उत्पादन और प्रशिक्षण के क्षेत्र में अव्वल रहा। उसके बाद यह केंद्र आर्थिक तंगी का शिकार बन गया। प्रशिक्षक विशेषज्ञ वेतन आदि न मिलने के कारण संस्थान से किनारा करते गए। आज हालत यह है कि लकड़ी व गमला उद्योग को छोड़कर अन्य सभी प्रकार के प्रशिक्षण बंद हो चुके हैं। अब बमुश्किल एक दर्जन कर्मचारी ही यहां कार्यरत हैं। इन कर्मचारियों का वेतन कैंपस के अंदर स्थित भारतीय स्टेट बैंक से मिलने वाले किराए और कैंपस में चल रहे एक विद्यालय की फीस से दिया जा रहा है। इस केंद्र से जुड़े कर्मचारी राधेश्याम पटेल, आशा अवस्थी, राम बाबू और अमर नाथ ने बताया कि वर्तमान समय में सात सौ रुपये से पंद्रह सौ रुपये तक विभिन्न कर्मचारियों को मिल रहे हैं जिससे परिवार का भरण पोषण तक नहीं हो पा रहा है। फिर भी कभी समय बहुरने की उम्मीद में हम इस केंद्र से बंधे हुए हैं। इस संबंध में आइईआरटी के निदेशक पीके सिंह से बात करने का प्रयास किया गया लेकिन मोबाइल बंद होने की वजह से यह संभव नहीं हो सका(दैनिक जागरण,फाफामउ-इलाहाबाद,20.11.2010)।
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