हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को आदेश दिए कि उन सभी शारीरिक शिक्षकों को स्कूल लेक्चरर्स के बराबर का वेतनमान अदा करें जो 11वीं व 12वीं कक्षाओं के छात्रों को पढ़ा रहे हैं और एनसीटीई द्वारा निर्धारित की गई न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता रखते हैं। न्यायाधीश दीपक गुप्ता ने अपने आदेश में कहा कि सभी योग्य शारीरिक शिक्षकों को यह वेतन पहली जून 2008 से दिया जाए। सरकार यदि 30 अप्रैल 2011 तक बकाया वेतन अदा करने में असफल रहती है तो बकाया राशि 12 प्रतिशत ब्याज सहित अदा करनी होगी।
गौरतलब है कि प्रदेश के करीब 94 शारीरिक शिक्षकों ने सरकार द्वारा बरते जा रहे भेदभावपूर्ण रवैये से तंग आकर अदालत से गुहार लगाई थी कि वे भी अन्य विषयों के स्कूल लेक्चरर्स की तरह एनसीटीई द्वारा न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता को पूरा करते हैं, परंतु उन्हें न तो सरकार द्वारा स्कूल लेक्चरर का दर्जा दिया गया है और न ही उनके बराबर वेतनमान। अदालत ने मामले से जुड़े रिकार्ड का अवलोकन करने के बाद पाया कि सरकार के विभिन्न विभागों, जो इस मामले से संबंधित थे का मानना था कि प्रदेश में करीब 118 शारीरिक शिक्षकों के पदों को अपग्रेड किया जाना चाहिए व उनके वेतनमान को स्कूल लेक्चरर्स के बराबर किया जाना सर्वथा उचित है। इस प्रस्ताव को प्रदेश सरकार की कैबिनेट मीटिंग के समक्ष पांच अक्टूबर 2007 को अप्रूवल के लिए रखा गया था, परंतु कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को नकार दिया था जिसके कारण याचिकाकर्ताओं को अदालत की शरण में आना पड़ा। अदालत ने माना कि आमतौर पर यह अदालत सरकार की नीति निर्धारण मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती, परंतु यदि कहीं भेदभाव व पक्षपात संबंधी मामला बनता है तो अदालत हस्तक्षेप करने पर बाध्य हो जाती है(दैनिक जागरण,शिमला,9.11.2010)।
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