जेनेवा के महाप्रयोग में पंजाब यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की दक्षता साबित होने के साथ ही उन्हें लार्ज हैड्रोन कोलाइडर (एलएचसी) के अगले चरणों के लिए डिटेक्टर तैयार करने का जिम्मा मिल गया है।
पीयू के फिजिक्स डिपार्टमेंट के वैज्ञानिक एलएचसी के लिए रेजिस्टिव प्लेट्स चैंबर (आरपीसी) बनाने की तैयारियों में जुट गए हैं। यह डिटेक्टर तैयार करने का जिम्मा प्रो. जेबी सिंह, प्रो. मनजीत कौर, डॉ. सुमन बेरी, डॉ. विपिन भटनागर और इंजीनियर वीके भंडारी पर है।
इससे पहले इन वैज्ञानिकों के बनाए कॉम्पैक्ट नियॉन सोलनाइड (सीएमसी) डिटेक्टर एलएचसी के दूसरे हिस्सों में खराबी के बाद भी सही तरीके से काम करते रहे। इसी कामयाबी के बाद सेंटर फॉर यूरोपियन न्यूक्लिअर रिसर्च (सीईआरएन) ने आरपीसी बनाने का जिम्मा दिया है। पीयू के अलावा भारत में यह काम सिर्फ भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर को ही दिया गया है।
इस जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने सात करोड़ रुपये जारी कर दिए हैं। इसके साथ ही फिजिक्स डिपार्टमेंट में आरपीसी बनाने के लिए लैबोरट्री भी तैयार है। यहां गैस मिक्सर, डाटा एक्विजिशन सिस्टम और प्लास्टिक सिंटिलेटर डिटेक्टर लगा दिए गए हैं। आरपीसी डिटेक्टर का रॉ मैटीरियल आते ही जनवरी में काम शुरू हो जाएगा। अगले साल अगस्त तक 50 आरपीसी तैयार होंगे। इनकी लागत तीन करोड़ रुपये आएगी।
टेस्टिंग शुरू
मेंटेनेंस और नए डिटेक्टर लगाने के लिए एलएचसी को नवंबर में रोका जाएगा। उस वक्त पीयू में तैयार यह आरपीसी डिटेक्टर एलएचसी में इंस्टॉल किए जाएंगे। प्रो. सिंह के मुताबिक इस लैब में आरपीसी डिटेक्टर तैयार होने से पहले ही प्लास्टिक सिंटिलेटर डिटेक्टर के जरिये टेस्टिंग शुरू हो चुकी है। यह प्लास्टिक सिंटिलेटर डिटेक्टर बिलकुल आरपीसी डिटेक्टर की तरह ही हवा में आने वाले कॉस्मिक-रे पार्टिकल को डिटेक्ट करेगा।
डाटा एक्विजिशन चैंबर कोलिजन के बाद मिलने वाले डाटा को स्टोर करके पार्टिकल की मॉनिटरिंग और पोजिशन का पता लगाएगा। कोलिजन से निकलने वाले पार्टिकल गैस चैंबर से निकलेंगे। आरपीसी डिटेक्टर दो बाय एक मीटर के होंगे। सीएनएस कोलिजन के बाद निकलने वाले पार्टिकल्स को आरपीसी की मदद से डिटेक्ट करेगा(अधीर रोहाल,दैनिक भास्कर,चंडीगढ़,16.11.2010)।
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