शिक्षा का अधिकार कानून के तहत दाखिले की प्रक्रिया को लेकर उठ रहे सवालों के बाद सरकार ने जरूरी दिशानिर्देश जारी किए हैं। छह से चौदह साल तक के बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा के बाबत दाखिले के लिए बच्चों या उनके माता-पिता का कोई स्क्रीनिंग टेस्ट तो अब भी नहीं होगा, अलबत्ता स्कूलों को दाखिले की अलग-अलग श्रेणी बनाने की छूट होगी।
जहां तक अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं का सवाल है, मदरसा व वैदिक पाठशालाएं शिक्षा का अधिकार कानून के दायरे से बाहर होंगी। इसमें खास तौर से धार्मिक व भाषाई अल्पसंख्यक संस्थान आएंगे, जिनको संविधान के अनुच्छेद 29 व 30 के तहत संरक्षण प्राप्त है। वे स्कूल जिन्हें अल्पसंख्यक समुदाय या संगठन की ओर से दूसरे सामान्य स्कूलों की तरह संचालित किया जा रहा है, शिक्षा का अधिकार कानून उन पर भी लागू होगा।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से जारी दिशानिर्देश के मुताबिक दाखिलों के लिए स्कूलों को अलग-अलग श्रेणी बनाने का अधिकार होगा और वे आवेदनों की औचक [रैंडम] छंटाई के आधार पर दाखिले ले सकेंगे। इसके लिए उन्हें पूरी तरह ऐसी पारदर्शी प्रक्रिया अपनानी होगी, जिसकी स्थानीय स्तर पर सभी को विस्तृत जानकारी पहले से हो। पहले यह स्पष्ट नहीं था। कानून के तहत स्कूलों को 6-14 साल तक के सभी बच्चों को दाखिला देना जरूरी था।
कानून के तहत स्कूलों को अब भी वंचित व कमजोर तबके के बच्चों को हर कक्षा में 25 प्रतिशत दाखिला देने के प्रावधान पर पूरी तरह अमल करना होगा। कानून में बच्चों के दाखिले के लिए उनकी या मां-बाप की स्क्रीनिंग पर पूरी तरह रोक का प्रावधान है। दिशानिर्देश में मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि कोई भी स्कूल बच्चों के माता-पिता का अलग से कोई डाटा भी नहीं तैयार करेगा(दैनिक जागरण संवाददाता,दिल्ली,25.11.2010)।
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