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13 नवंबर 2010

रेलवेःयह कैसा तोहफा, न छुट्टी न पैसा!

रेलवे बार्ड द्वारा अपने कर्मचारियों को दिया जाने वाला तोहफा उनके जी का जंजाल बनता जा रहा है। दो वर्ष बीत गया पर अभी तक सैकड़ों ऐसे कर्मचारी हैं जिन्हें आज तक 'एलएपी' यानि लीव एवरेज पे 'नकदीकरण अवकाश' नहीं मिल पाया है। वे रोज संबंधित विभाग का चक्कर लगाते हैं लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं। उनका कहना है कि न पैसा मिल रहा है और ना ही छुट्टी।

रेलवे बोर्ड ने छठे वेतन आयोग के तहत अपने कर्मचारियों को वेतन वृद्धि के साथ ही 'नकदीकरण अवकाश' का तोहफा दिया। यह तोहफा वर्ष 2008 में लागू भी हो गया। अधिकारियों की उदासीनता के चलते दो वर्ष बीतने के बाद भी इस तोहफे का लाभ कर्मचारियों को नहीं मिल सका है। विभाग लाभ देने की बात तो दूर सही जानकारी देने में भी कतराता है। हालांकि कुछ कर्मचारी तो इसका लाभ ले चुके हैं लेकिन अभी भी सैकड़ों ऐसे कर्मचारी हैं जो इसे पाने के लिए परेशान हैं। जिनकी नौकरी दो से पांच साल तक रह गयी है वे कुछ ज्यादा ही परेशान हैं। उनका कहना है कि लगता है इस तोहफे का लाभ लिये बिना ही हम अवकाश प्राप्त कर लेंगे।

मालूम हो कि रेलवे बोर्ड ने देश के अन्य कुछ प्रतिष्ठित प्रतिष्ठानों की तर्ज पर नकदीकरण अवकाश का प्राविधान शुरू किया। इसमें प्रत्येक छह माह पर हर कर्मचारी को 15 दिन का एलएपी मिलता है, जो छुट्टी के खाते में जमा हो जाता है। इसके बाद विभाग उस छुट्टी के खाते से 10 दिन का एलएपी के बदले 10 दिन का वेतन कर्मचारियों को प्रदान करता है। यह लाभ कर्मचारी को प्रत्येक दो वर्ष के अन्तराल में मिलता है, जो नौकरी के दौरान तीन बार ही मिलता है। अक्सर कर्मचारी इस वेतन और छुट्टी का उपयोग परिवार के साथ घूमने में करते हैं। रेलवे बोर्ड ने भी इसी मंशा से इस प्राविधान को लागू किया है। लेकिन आलम यह है कि रेलवे कर्मचारी 2008 से ही बच्चों के साथ घूमने की आस लगाये बैठे हैं। इस बाबत पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी अमित सिंह कहते हैं कि नियमानुसार सभी कर्मचारियों को यह लाभ मिल रहा है। जिन्हें नहीं मिला है वे आवेदन करें, जरूर मिलेगा। यह उनका अधिकार है(दैनिक जागरण,गोरखपुर,13.11.2010)।

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