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18 नवंबर 2010

पति की जाति के आधार पर पत्नी की नौकरी बहाल करने का आदेश

पति की जाति के आधार पर अनुसूचित जनजाति (एसटी) कोटा के तहत नौकरी पाने वाली एक शिक्षिका को राहत प्रदान करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि केंद्रीय विद्यालय संगठन उसे वापस नौकरी पर रखे। हालांकि उच्च न्यायालय ने यह भी साफ कर दिया है कि उसे भविष्य में अनुसूचित जनजाति का न माना जाए। न्यायमूर्ति प्रदीप नंदराजोग व न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल ने उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि शिक्षिका ने यह नौकरी एसटी का सर्टिफिकेट गलत तरीके से बनवाकर नहीं पाई थी। उसको लगा था कि शादी करने के बाद वह भी एसटी बन गई है। इसी आधार पर उसने सर्टिफिकेट बनवाकर नौकरी पाई है। यह ढिलाई केंद्रीय विद्यालय संगठन की तरफ से बरती गई है कि उन्होंने उसकी नियुक्ति के समय उसकी सामाजिक स्थिति के बारे में जानकारी नहीं ली। उसके बाद भी 15 साल तक कोई कार्रवाई नहीं की। ऐसे में इस समय उस महिला के खिलाफ की गई कई कार्रवाई उसके लिए काफी हानिकारक है। इसलिए अब उसे वापस नौकरी पर रखा जाए। शांति आचार्य सीसींघी को मार्च 1988 में केंद्रीय विद्यालय संगठन में बतौर प्राथमिक स्कूल में शिक्षिका नियुक्त किया गया था। उसने अपनी पति की जाति के आधार पर अनुसूचित जनजाति का सर्टिफिकेट बनवाया था और इसी कोटे के तहत उसे यह नौकरी मिली थी। लगभग 15 साल बाद संगठन की तरफ से उसे एक ज्ञापन सौंप कर कहा गया कि नियमों के हिसाब से अगर कोई व्यक्ति जन्म से एससी या एसटी नहीं है तो उसकी शादी किसी एससी या एसटी से होने के बाद वह इसके तहत लाभ नहीं ले सकता है। इसलिए वह अपने पिता के नाम से एसटी का सर्टिफिकेट बनवा कर दे। जबकि शांति का कहना था कि उसने एसटी से शादी की है और वह उस जाति के सब नियमों का पालन कर रही है तो वह भी अब एसटी ही है(दैनिक जागरण,दिल्ली,18.11.2010)।

1 टिप्पणी:

  1. निर्णय या नियम उचित नहीं है यदि कोई भी स्त्री या पुरुष किसी आरक्षित जाति में विवाह कर उसी परिवार में जा कर रह रहा है तो उसे आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए।

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