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29 नवंबर 2010

कहीं आप आर्थिक कमजोरी के शिकार तो नहीं?

जब भी हम किसी बीमारी का नाम सुनते हैं तो हमारे जहन में एकाएक दर्द, कष्ट और पीड़ा का ख्याल ही उभर आता है। अब तक आपने स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों के बारे में ही सुना होगा। लेकिन क्या आपने कभी आर्थिक बीमारी के बारे में सुना है? स्वास्थ्य से जुड़ी व्याधि व्यक्ति के शरीर को प्रभावित करती है और पीड़ा व तनाव का कारण बन जाती है। वहीं दूसरी ओर, 'आर्थिक' व्याधि व्यक्ति के मस्तिष्क को दुष्प्रभावित करती है और तनाव व सेहत संबंधी समस्याओं की वजह बनती है। फिट रहने के लिए किसी भी तरह की स्वास्थ्य और आर्थिक व्याधि से दूर रहना निहायत जरूरी है। चलिए देखते हैं कि हम इन तमाम आर्थिक व्याधियों के पीछे छिपे कारणों और लक्षणों का पता किस प्रकार लगा सकते हैं।


अधिक बीमा: आमतौर पर कई लोग अपनी पूरी बचत को इंश्योरेंस पॉलिसी में लगा देते हैं, ऐसे व्यक्ति अधिक बीमा की बीमारी से जूझ रहे हैं। जीवन बीमा कभी भी इस पॉलिसी को लेने वाले के लिए न होकर उसके आश्रितों के लिए होती है। इंश्योरेंस घर के कमाऊ व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार की अनहोनी की स्थिति में उस पर निर्भर सदस्यों के लिए आर्थिक सुरक्षा कवच के समान होता है। ऐसे में अगर ऐसा कोई व्यक्ति इंश्योरेंस पॉलिसी ले रहा है, जिस पर आर्थिक रूप से कोई आश्रित नहीं है, वह अधिक बीमा की व्याधि से जूझ रहा है। यह रोग टैक्स बचाने के लिए इंश्योरेंस खरीदने वाले युवाओंऔर वृद्धजनों में काफी आम है।

कम बीमा: आपके पास भले ही 20 इंश्योरेंस पॉलिसियां हों लेकिन शायद ही आपने कभी बीमा की कुल राशि के बारे में सोचा होगा। यह वह राशि है जो आपकी मृत्यु, अक्षमता या गंभीर बीमारी की स्थिति में आपको और आपके आश्रितों को मिलती है। ढेर सारी पॉलिसियां खरीदना सामान्य ट्रेंड बन गया है भले ही उसकी कुल बीमा राशि किसी दुर्घटना की स्थिति में अपर्याप्त ही क्यों न हो। आमतौर पर कम बीमा की बीमारी हालिया विवाहित जोड़ों और हालिया अभिभावक बने लोगों में देखने को मिलती है।

कर्ज का जंजाल: किसी महत्वपूर्ण आवश्यकता के लिए धन की जरूरत के लिए ही लोन लिया जाना चाहिए न कि अपने शौक पूरा करने के लिए मनचाही खरीदारी या गतिविधि के लिए। यह महंगी गलती साबित हो सकती है। अगर आप कई सारे क्रेडिट कार्ड्स का प्रयोग कर रहे हैं लेकिन समय पर उनका भुगतान करना भूल गए हैं साथ ही आप पर्सनल लोन लेकर स्टॉक मार्केट में निवेश करते हैं तो आप कर्ज के जंजाल में फंस चुके हैं। हाल ही में अपनी नौकरी शुरू करने वाले और युवा युगल में यह समस्या ज्यादा पाई जाती है।

निवेश पर कम प्राप्तियां: अपने बच्चों को बड़ा करने जितनी ही महत्वपूर्ण है आपके धन में वृद्धि का होना। जोखिम न उठाने के इरादे से अधिकांश लोग अपने धन का कम ब्याज दर में ही एफडी, परंपरागत बीमा पॉलिसी आदि में निवेश कर देते हैं। लेकिन यह उसकी ग्रोथ के लिए किसी लिहाज से अच्छा नहीं है। अगर आप पुनरावृत्ति डिपॉजिट, फिक्स डिपॉजिट, पीपीएफ या एलआईसी पॉलिसी में भरोसा करते हैं तो आप अपने पूंजी के निवेश पर कम प्राप्ति के शिकार हो बन रहे हैं।

लंबी समयावधि: दीर्घावधि यानी 5, 10, 20, 40 या फिर 60 वर्ष। आपने कब तक निवेश की योजना बना रखी है। अंतिम उद्देश्य को ध्यान में जरूर रखें। अगर आपने अपने धन को बचत और खासतौर पर आयकर बचत के लिए लंबी समयावधि के लिए निवेश कर रखा है तो निश्चित ही आप लंबी समयावधि सीमा (एलटीएच) की समस्या से पीडि़त हैं। युवाओं से लेकर मध्यम आयु वर्ग के लोग इसके शिकार हैं।

क्या इनका कोई इलाज है: वैसे तो इन समस्याओं का कोई शीघ्र उपाय नहीं है। पर्सनल फाइनेंस में सभी निर्णय एक दूसरे से जुड़े होते हैं। आपके पास पैसा तभी आता है जब पहले आपके पास से पैसा जाता है। कोई आर्थिक चिकित्सक ही आपके जीवन की आर्थिक, शारीरिक और व्यावसायिक स्थितियों को जानने-समझने के बाद आपको सही राय दे सकता है। रोगी बनने से बेहतर है कि निवेश करने से पहले अपनी आर्थिक सेहत या आर्थिक योजना के बारे में पूरी जांच-पड़ताल कर लें। इससे पहले कि देर हो जाए, अपनी पीड़ा से जल्द-से-जल्द छुटकारा पाएं(शिल्पी जौहरी,बिजनेस भास्कर,27.11.2010)

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