सरकारी कंपनियों में काम से कोताही करना कर्मचारियों पर भारी पड़ सकता है। परफॉर्मेंस मैनेजमेंट सिस्टम पर गठित समिति की सिफारिशों को अगर मंजूरी मिल जाती है तो सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (पीएसयू) को यह अधिकार मिल सकता है कि वह अपने नाकारे कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा सकें। इस कदम को पहले ही सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के प्रमुख संगठन डिपार्टमेंट ऑफ पब्लिक इंटरप्राइज (डीपीई) का समर्थन मिल चुका है। अंतिम प्रस्ताव में सरकारी कंपनियों को यह छूट दी जा सकती है कि वह खराब प्रदर्शन करने वाले कर्मचारियों पर छंटनी की कैंची चला सकें। हालांकि, इसके तहत कोई भी सरकारी कंपनी अपने कुल कर्मचारियों में से 10 फीसदी से ज्यादा छंटनी नहीं कर सकती है।
यह सीमा सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के लिए दूसरे वेतन संशोधन समिति की सिफारिशों के अनुकूल है। इस सिफारिश में कहा गया था कि प्रत्येक कंपनी को अपने कुल कर्मचारियों में से 10 फीसदी को खराब और गैर-प्रदर्शन की श्रेणी में डालना चाहिए और न तो इन्हें वेतन बढ़ोतरी के आकलन में शामिल किया जाना चाहिए और न ही समीक्षा की अवधि में प्रदर्शन आधारित बोनस दिया जाना चाहिए। अगर यह सिफारिश इसी तरह लागू हो जाती है तो इसका मतलब सरकारी कंपनियों के कुल 15 लाख कर्मचारियों में से 10 फीसदी की कटौती हो सकती है। सार्वजनिक उद्यम विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'अधिकतर पीएसयू इस बात पर एकमत हैं कि खराब प्रदर्शन करने वाले कर्मचारियों को सुधरने का सिर्फ एक मौका देना चाहिए और अगर फिर भी किसी कर्मचारी के कामकाज में सुधार नहीं होता है तो वह कंपनी छोड़ सकता है।'
समिति ने यह अधिकार प्रत्येक सरकारी कंपनी को दिया था कि वह पारदर्शी और बेहतर आकलन व्यवस्था तैयार करे। हालांकि, साथ ही यह भी निर्देश दिया कि अधिकारियों को ग्रेडिंग देते वक्त ज्यादा उदारता न दिखाई जाए और अधिकतम 10-15 फीसदी अधिकारियों को ही उत्कृष्ट ग्रेड दिया जाए। इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाते हुए विभाग ने सरकारी कंपनियों के लिए इसका खाका तैयार किया है। अधिकारी ने कहा, 'पीएसयू को स्वतंत्र निदेशक की अध्यक्षता में एक वेतन समिति बनाने की जरूरत है, ताकि प्रदर्शन के पैमाने पर इनाम के सिस्टम को प्रोत्साहन मिल सके।'
स्कोप के चेयरमैन यू डी चौबे का मानना है कि यह प्रस्ताव तभी काम करेगा जब बेहतर प्रदर्शन करने वाले सही इनाम मिले। उन्होंने कहा, 'अगर बेहतर प्रदर्शन करने वाले कर्मचारियों की संख्या ज्यादा है तो ऐसी सीमा तय होने से उनके प्रदर्शन पर बुरा असर पड़ेगा।' मौजूदा ढांचा में प्रदर्शन संबंधी भुगतान कंपनी के मुनाफे पर आधारित है, लेकिन कोई भी कंपनी अपने कर पूर्व मुनाफे का अधिकतम 5 फीसदी रकम ही कर्मचारियों में बांट सकती है। हालांकि, इस बाध्यता के बावजूद मुनाफे में चल रही सरकारी कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों को प्रदर्शन के आधार पर उनकी बेसिक सैलरी का 200 फीसदी तक रकम दिया जाता है। नुकसान में चल रही सरकारी कंपनी के कर्मचारी इस लाभ से महरूम रहते हैं(धीरज तिवारी,इकनॉमिक टाइम्स,24.11.2010)।
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