सर्वोच्च न्यायालय के आदेश और शिक्षकों के विरोध को ताक पर रखते हुए सरकार शिक्षकों का प्रयोग शिक्षा के अलावा अन्य सरकारी कार्यो में कर रही है। बात कुछ दिन की हो तो सही है लेकिन जब मुख्य दायित्व से हटाकर लगातार दूसरी जिम्मेदारियों का बोझ डाला जाए तो हालात बिगड़ने स्वाभाविक हैं। यही हाल इस समय बेसिक शिक्षा का हो रहा है।
प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालयों को शिक्षक कम प्रशासनिक कर्मचारी अधिक कहा जाए तो सही रहेगा। शिक्षण से हटाकर इन्हें सरकारी कार्यो का दायित्व सौंपे जाने से तो यही लगता है कि सरकार नहीं चाहती कि शिक्षक स्कूलों में बच्चों को पढ़ाएं। सत्र 2010-11 में बच्चों ने कितने दिन स्कूल में पढ़ाई की होगी इसका पता शिक्षकों के शेड्यूल से लग जाएगा। इस सत्र में शिक्षकों को सौंपे गए सरकारी कार्यो द्वारा नौनिहालों का बंटाधार किया जा रहा है। सत्र शुरू भी नहीं हुआ था तभी शिक्षकों को जनगणना कार्य का दायित्व सौंप दिया गया। जून जुलाई में शिक्षकों ने इस कार्य से जैसे-तैसे पीछा छुड़ाया। इसके तुरंत बाद शिक्षकों पर बीएलओ कार्य थोप दिया गया। लगभग दो माह तक शिक्षक इस कार्य में लिप्त रहे। इसके बाद त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए शिक्षकों के प्रशिक्षण शुरू हो गए। इसमें कई कई दिन तक स्कूलों में शिक्षा प्रभावित रही। चुनावी ड्यूटी ने भी शिक्षकों को काफी व्यस्त रखा। जैसे-तैसे अब इससे पीछा छुटने के बाद प्रशासन द्वारा एक बार फिर शिक्षकों को 11 नवंबर से बीएलओ का कार्य सौंप दिया गया है। अकेले हापुड़ ब्लॉक से इसमें 150 शिक्षकों की ड्यूटी लगाई गई है। हापुड़ शहर क्षेत्र की स्थिति तो इससे भी बदतर है। शहर में ऐसे स्कूलों की संख्या काफी कम है जिनमें शिक्षक उपस्थित रहेंगे। इन हालातों में एक बार फिर शिक्षण कार्य लगभग ठप्प रहेगा। शिक्षकों के पूरे कार्यक्रम से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में इस सत्र में बच्चों ने क्या सीखा होगा। लगभग आधा सत्र बीत चुका है और अभी तक बच्चों को एक चौथाई कोर्स भी पूरा नहीं हुआ है। लेकिन अधिकारियों के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है। शासन के आदेश होने की बात कहकर सभी अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रहे हैं(दैनिक जागरण संवाददाता,हापुड़,9.11.2010)।
सुन्दर प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंबधाई !